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श्रमण सूक्त ।
श्रमण सूक्त
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अमरोवम जाणिय सोक्खमुत्तम
रयाण परियाए तहारयाण । निरओवम जाणिय दुक्खमुत्तम रमेज्ज तम्हा परियाय पडिए।।
(दस चू (१) ११)
सयम में रत मुनियो का सुख देवो के समान उत्तम (उत्कृष्ट) जानकर तथा सयम मे रत न रहने वाले मुनियो का दुख नरक के समान उत्तम (उत्कृष्ट) जानकर पण्डित मुनि सयम मे ही रमण करे।
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