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श्रमण सूक्त
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देवलोगसमाणो उ परियाओ महेसिण ।
रयाण अरयाणं तु महानिरयसारिस ||
( दस चू ( १ ) : १०)
संयम में रत महर्षियों के लिए मुनि-पर्याय देवलोक के समान सुखद होता है और जो सयम में रत नहीं होते उनके लिए वही (मुनि - पर्याय) महानरक के समान दुखद होता है।
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