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श्रमण सूक्त
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पुत्तदारपरिकिण्णो मोहसताणसतओ । पकोसन्नो जहा नागो स पच्छा परितप्पइ ||
(दस चू (१) ८)
वह उत्प्रव्रजित साधु पुत्र और स्त्री से घिरा हुआ ओर मोह की परम्परा से परिव्याप्त होकर वेसे ही परिताप करता हे जैसे पक मे फसा हुआ हाथी ।
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