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श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
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(८ १६४
जया य कुकुडबस्स
कुतत्तीहि विहम्मइ। हत्थी व बधणे बद्धो स पच्छा परितप्पइ।।
(दस चू (१) ७) ।
वह उत्प्रव्रजित साधु जब कुटुम्ब की दुश्चिन्ताओ से प्रतिहत होता है तब वह वैसे ही परिताप करता है जैसे बन्धन से बधा हुआ हाथी।
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