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श्रमण सूक्त
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(१६२
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जया या माणिमो हाइ
पच्छा होइ अमाणिमो। सेट्टि व्व कब्बडे छूढो स पच्छा परितप्पण्इ।
(दस चू (
प्रव्रजितकाल मे साधु मान्य होता है। वहीं जब उत्प्रव्रजित होकर अमान्य हो जाता है तब वह वैसे ही परिताप करता है जैसे कर्बट (छोटे से गाव) में अवरुद्ध किया हुआ श्रेष्ठी।
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