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श्रमण सूक्त
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जया य पूइमो होइ
पच्छा होइ अपूइमो। राया व रज्जपभट्ठो स पच्छा परितप्पइ।
(दस चू (१) ४)
प्रव्रजितकाल मे साधु पूज्य होता है। वही जब उत्प्रवजित होकर अपूज्य हो जाता है तब वह वैसे ही परिताप करता हे जैसे राज्य-भ्रष्ट राजा।
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