________________
श्रमण सूक्त
१६०
जया य वदिमो होइ पच्छा होइ अवदिमो ।
देवया व चुया ठाणा
स पच्छा परितप्पइ | |
(दस चू (१) ३)
प्रव्रजितकाल में साघु वदनीय होता है। वही जब उत्प्रव्रजित होकर अवन्दनीय हो जाता है तब वह वैसे ही परिताप करता है जैसे अपने स्थान से च्युत देवता ।
१६०