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श्रमण सूक्त
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तहेव असण पाणग वा
विविह खाइमसाइम लभित्ता ।
छदिय साहम्मियाण भुजे
भोच्चा सज्झायरए य जे स भिक्खू ।। (दस १० ६)
पूर्वोक्त प्रकार से विविध अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य को प्राप्त कर जो साधर्मिको को निमंत्रित कर भोजन करता है, जो भोजन कर चुकने पर स्वाध्याय मे रत रहता है-वह भिक्षु है ।
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