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श्रमण सूक्त
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न य वुग्गहिय कह कहेज्जा
न य कुप्पे निहुइदिए पसते। सजमधुवजोगजुत्ते
उवसते अविहेडए जे स भिक्खू ।। जो सहइ हु गामकटए
अक्कोसपहारतज्जणाओ य। भयभेरवसद्दसपहासे समसुहदुक्खसहे य जे स भिक्खू ।।
(दस १० १०.११)
Avaimer
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जो कलहकारी कथा नहीं करता, जो कोप नहीं करता, जिसकी इन्द्रियाँ अनुद्धत हैं, जो प्रशान्त है, जो सयम मे ध्रुवयोगी है, जो उपशात है, जो दूसरो को तिरस्कृत नहीं करता-वह भिक्षु है।
जो काटें के समान चुभने वाले इन्द्रिय-विषयो, आक्रोशवचनो, प्रहारो, तर्जनाओ और बेताल आदि के अत्यन्त भयानक शब्दयुक्त अट्टहासो को सहन करता है तथा सुख और दुःख को समभावपूर्वक सहन करता है-वह भिक्षु है।
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