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श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त (१५०
रोइय नायपुत्तवयणे __ अत्तसमे मन्नेज्ज छप्पि काए। पच य फासे महब्बयाइ पचासवसवरे जे स भिक्खू ।।।
(दस १० ५)
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जो ज्ञातपुत्र के वचन में श्रद्धा रखकर छहो कायों (समी जीवो) को आत्मसम मानता है, जो पाँच महाव्रतो का पालन करता है, जो पाँच आसवो का सवरण करता है-वह भिक्षु है।
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