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श्रमण सूक्त
अमण गुण
(१४६
अनिलेण न वीए न वीयावए
हरियाणि न छिदे न छिदवाए। बीयाणि सया विवज्जयतो सच्चित नाहारए जे स भिक्खू।।
(दस १० ३)
जो पखे आदि से हवा न करता है ओर न करवाता है, जो हरित का छेदन न करता है और न करवाता है जो वीजो का सदा विवर्जन करता है (उनके सस्पर्श से दूर रहता है) जो सचित्त का आहार नहीं करता-वह भिक्षु है।
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