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श्रमण सूक्त
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पुढवि न खणे न खणावए सीओदग न पिए न पियावए ।
अगणिसत्थ जहा सुनिसिय
त न जले न जलावए जे स भिक्खू ।। ( दस १० २)
जो पृथ्वी का खनन न करता है ओर न कराता है, जो शीतोदक न पीता है और न पिलाता है, शस्त्र के समान सुतीक्ष्ण अग्नि को न जलाता है और न जलवाता है -- वह भिक्षु है ।
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