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श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त (१४३
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राइणिएसु विणय पउजे
डहरा वि य जे परियायजेथा। नियत्तणे वठ्ठइ सच्चवाई ओवावय वक्ककरे स पुज्जो।।
(दस ६ (३) ३)
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जो अल्पवयस्क होने पर भी दीक्षा-काल मे ज्येष्ठ है-उन पूजनीय साधुओ के प्रति विनय का प्रयोग करता है, नम्र व्यवहार करता है सत्यवादी है, गुरु के समीप रहने वाला हे और जो गुरु की आज्ञा का पालन करता है, वह पूज्य है।
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