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श्रमण सूक्त
( १४२
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आयारमहा विणय पउजे
सुस्सूसमाणो परिगिज्झ वक्क। जहोवइट्ठ अभिकखमाणो गुरु तु नासाययई स पुज्जो।।
(दस ६ (३) २)
जो आचार्य के लिए विनय का प्रयोग करता है, जो आचार्य को सुनने की इच्छा रखता हुआ उनके वाक्य को ग्रहण कर उपदेश के अनुकूल आचरण करता है, जो गुरु की आशातना नहीं करता, वह पूज्य है।
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