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श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त (१४१)
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आयरिय अग्गिमिवाहियग्गी
सुस्सूसमाणो पडिजागरेज्जा। आलोइय इगियमेव नच्चा जो छन्दमाराहयइ स पुज्जो।।
(दस ६ (३) १)
जैसे आहिताग्नि अग्नि की शुश्रूषा करता हुआ जागरूक रहता है, वैसे ही जो आचार्य की शुश्रूषा करता हुआ जागरूक रहता है, आचार्य के आलोकित और इडिगत को जानकर उनके अभिप्राय की आराधना करता है, वह पूज्य है।
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