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श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
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निद्देसवत्ती पुण जे गुरूण
सुयत्थधम्मा विणयम्मि कोविया। तरित्तु ते ओहमिण दुरुत्तर खवित्तु कम्म गइमुत्तम गइ।।
(दस ६ (२) २३)
जो गुरु के आज्ञाकारी हैं, जो गीतार्थ है, जो विनय मे कोविद हैं, वे इस दुस्तर ससार-समुद्र को तर कर, कर्मों का क्षय कर उत्तम गति को प्राप्त होते हैं।
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