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श्रमण सूक्त
(60_ श्रमण सूक्त
(१३४
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जे आयरियउवज्झायाणं
सुस्सूसावयणकरा। तेसि सिक्खा पवड्वति जलसित्ता इव पायवा।।
(दस ६ (२) · १२)
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जो मुनि आचार्य और उपाध्याय की शुश्रूषा और आज्ञापालन करते हैं उनकी शिक्षा उसी प्रकार बढती है जैसे जल से सींचे हुए वृक्ष।
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