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श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
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तहेव अविणीयप्पा
देवा जक्खा य गुज्झगा। दीसंति दुहमेहंता आभिओगमुवट्टिया।।
(दस ६ (२) १०)
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जो देव, यक्ष और गुह्यक (भवनवासी देव) अविनीत होते हैं, वे सेवाकाल मे दुख का अनुभव करते हुए देखे जाते हैं।
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