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___ श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
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जहा ससी कोमुइजोगजुत्तो
नक्खत्ततारागणपरिवुडप्पा। खे सोहई विमले अब्भमुक्के एव गणी सोहइ भिक्खुमझे।।
(दस ६ (१) १५)
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जिस प्रकार बादलो से मुक्त विमल आकश मे नक्षत्र और तारागण से परिवृत, कार्तिक पूर्णिमा मे उदित चन्द्रमा शोभित होता है, उसी प्रकार भिक्षओ के बीच गणी (आचार्य) शोभित होते हैं।
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