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श्रमण सूक्त
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सोच्चाण मेहावी सुभासियाइ सुस्सूसए आयरियप्पमत्तो ।
आराहइत्ताण गुणे अणेगे
से पावई सिद्धिमणुत्तर ||
(दस. ६ (१) १७)
मेधावी मुनि इन सुभाषितो को सुनकर अप्रमत्त रहता हुआ आचार्य की शुश्रूषा करे। इस प्रकार वह अनेक गुणो की आराधना कर अनुत्तर सिद्धि को प्राप्त करता है।
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