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ENOL श्रमण सूक्त
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आयरियपाया पुण अप्पसन्ना
अबोहिआसायण नत्थि मोक्खो। तम्हा अणाबाहसुहाभिकंखी गुरुप्पसायाभिमुहो रमेज्जा।।।
(दस ६ (१) १०)
आचार्यपाद के अप्रसन्न होने पर बोधि-लाभ नहीं होता। आशातना से मोक्ष नहीं मिलता। इसलिए मोक्ष-सुख चाहने वाला मुनि गुरु-कृपा के अभिमुख रहे।
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