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श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
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ये यावि मदि ति गुरु विइत्ता
डहरे इमे अप्पसुए त्ति नच्चा। हीलंति मिच्छ पडिवज्जमाणा करेंति आसायण ते गुरूण ।।
(दस ६(१) २)
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जो मुनि गुरु को-'ये मंद (अल्प-प्रज्ञ) हैं, ये अल्पवयस्क और अल्प-श्रुत हैं' ऐसा जानकर उनके उपदेश को मिथ्या मानते हुए उनकी अवहेलना करते हैं, वे गुरु की आशातना करते हैं।
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