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श्रमण सूक्त
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जाए सद्धाए निक्खतो
परियायहाणमुत्तम। तमेव अणुपालेज्जा गुणे आयरियसम्मए।।
(दस ८ ६०)
मुनि जिस श्रद्धा से उत्तम प्रवज्या-स्थान के लिए घर से निकला है, उस श्रद्धा को पूर्ववत् बनाए रखे और आचार्य सम्मत गुणो का अनुपालन करे।
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