________________
श्रमण सूक्त
(१२२
विवित्ता य भवे सेज्जा
नारीण न लवे कह। गिहिसथव न कुज्जा कुज्जा साहूहि संथव ।।
(दस ८ ५२)
-
-
-
-
जो एकान्त स्थान हो वहा मुनि केवल स्त्रियो के बीच व्याख्यान न दे। मुनि गृहस्थो से परिचय न करे। परिचय साधुओ से करे।
-
-
9-__१२२