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_श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
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चउण्ह खलु भासाण
परिसखाय पन्नव। दोण्ह तु विणय सिक्खे दो न भासेज्ज सव्वसो।।
(दस ७ १)
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प्रज्ञावान् मुनि चारो भाषाओ (सत्य, असत्य, मिश्र और व्यवहार) को जानकर दो (सत्य और व्यवहार भाषा) के द्वारा विनय (शुद्ध प्रयोग) सीखे और दो सर्वथा न बोले।
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