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श्रमण सूक्त
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सओवसता अममा अकिचणा
सविज्जविज्जाणुगया जससिणो। उउप्पसन्ने विमले व चदिमा सिद्धि विमाणाइ उवेति ताइणो।।
(दस ६ ६८)
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सदा उपशान्त, ममता रहित, अकिञ्चन, आत्मविद्यायुक्त, यशस्वी और त्राता मुनि शरद् ऋतु के चन्द्रमा की तरह मलरहित होकर सिद्धि या सौधर्मावतसक आदि विमानो को प्राप्त करते हैं।
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