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श्रमण सूक्त
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खवेति अप्पाणममोहदसिणो
तवे रया सजम अज्जवे गुणे। धुणति पावाइ पुरेकडाई नवाइ पावाइ न ते करेति।।।
(दस ६ ६७)
अमोहदर्श, तप, सयम और ऋजुतारूप गुण मे रत मुनि शरीर को कृश कर देते हैं. वे पुराकृत पाप का नाश करते हैं और नए पाप नहीं करते।
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