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श्रमण सूक्त
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जा य सच्चा अवत्तव्वा
सच्चामोसा य जा मुसा ।
जाय बुद्धेहिऽणाइन्ना
न त भासेज्ज पन्नव । ।
( दस ७ - २)
जो अवक्तव्य सत्य, सत्यमृषा (मिश्र), मृषा और असत्याऽमृषा (व्यवहार) भाषा बुद्धो के द्वारा अनाचीर्ण हो उसे प्रज्ञावान् मुनि न बोले ।
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