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________________ ९९८ __. अर्चयस्व हुपीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पयपुराण जो भक्तियुक्त चित्तसे इन नामोंका पाठ या श्रवण वेदानुमोदित माहात्म्यका वर्णन किया है। यह परम करता है, वह सौ कोटि कल्पोंमें किये हुए समस्त पापोंसे कल्याणकारक है। मुक्त हो जाता है। पार्वती ! इन नामोंका भक्तिभावसे वसिष्ठजी कहते हैं-भगवान् शङ्करके द्वारा कहे पाठ करनेवाले मनुष्योंके लिये जल भी स्थल हो जाते हुए परमात्मा श्रीरामचन्द्रजीके माहात्म्यको सुनकर पार्वती है, शत्रु मित्र बन जाते हैं, राजा दास हो जाते हैं, जलती देवी 'रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे । रघुनाथाय हुई आग शान्त हो जाती है, समस्त प्राणी अनुकूल हो नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥' इस मन्त्रका ही जाते हैं, चशल लक्ष्मी भी स्थिर हो जाती है, ग्रह अनुग्रह सदा-सब अवस्थाओंमें जप करती हुई कैलासमें करने लगते हैं तथा समस्त उपद्रव शान्त हो जाते हैं। जो अपने पतिके साथ सुखपूर्वक रहने लगी। राजा भक्तिपूर्वक इन नामोंका पाठ करता है, तीनों लोकके दिलीप ! यह मैंने तुमसे परम गोपनीय विषयका वर्णन प्राणी उसके वशमें हो जाते हैं तथा वह मनमें जो-जो किया है। जो भक्तियुक्त हृदयसे इस प्रसङ्गका पाठ या कामना करता है, वह सब इन नामोंके कीर्तनसे पा लेता श्रवण करता है, वह सबका वन्दनीय, सब तत्त्वोंका है। जो दूर्वादलके समान श्यामसुन्दर कमलनयन, ज्ञाता और महान् भगवद्भक्त होता है। इतना ही नहीं, वह पीताम्बरधारी भगवान् श्रीरामका इन दिव्य नामोंसे समस्त कॉक बन्धनसे मुक्त हो परमपदको प्राप्त कर स्तवन करते हैं, वे मनुष्य कभी संसार-बन्धनमें नहीं लेता है। राजन् ! तुम इस संसारमें धन्य हो; क्योंकि पड़ते। राम, रामभद्र, रामचन्द्र, वेधा, रघुनाथ, नाथ तुम्हारे ही कुलमें पुराणपुरुषोत्तम श्रीहरि सब लोकोंका एवं सीतापतिको नमस्कार है।* देवि ! केवल इस हित करनेके लिये दशरथनन्दनके रूपमें अवतार लेंगे। मन्त्रका भी जो दिन-रात जप करता है, वह सब पापोंसे अतः इक्ष्वाकुवंशीय क्षत्रिय देवताओंके लिये भी मुक्त हो श्रीविष्णुका सायुज्य प्राप्त कर लेता है। इस पूजनीय होते हैं; क्योंकि उनके कुलमें राजीवलोचन प्रकार मैंने तुम्हारे प्रेमवश भगवान् श्रीरामचन्द्रजीके भगवान् श्रीरामका अवतार होता है। त्रिदेवोंमें श्रीविष्णुकी श्रेष्ठता तथा ग्रन्थका उपसंहार वसिष्ठजी कहते है-पूर्वकालकी बात तत्त्वका अनुसन्धान करनेके लिये परस्पर बोलेहै-स्वायम्भुव मनु परम उत्तम एवं दीर्घकालतक चालू 'वेदवेत्ता ब्राह्मणोंके लिये कौन देवता सर्वश्रेष्ठ एवं पूज्य रहनेवाले यज्ञका अनुष्ठान करनेके लिये मुनियोंके साथ है? ब्रह्मा, विष्णु और शिवमेंसे किसकी अधिक स्तुति मन्दराचल पर्वतपर गये। उस यज्ञमें कठोर व्रतोंका हुई है ? किसका चरणोदक सेवन करनेयोग्य है? पालन करनेवाले, अनेक शास्त्रोंके ज्ञाता, बालसूर्य एवं किसको भोग लगाया हुआ प्रसाद परम पावन है ? कौन अग्निके समान तेजस्वी, समस्त वेदोंके विद्वान् तथा सब अविनाशी, परमधामस्वरूप एवं सनातन परमात्मा है? धर्मकि अनुष्ठानमें तत्पर रहनेवाले मुनि पधारे थे। वह किसके प्रसाद और चरणोदक पितरोंको तृप्ति प्रदान महायज्ञ जब आरम्भ हुआ तो पापरहित मुनि, देवता- करनेवाले होते है?' . परमात्मा पर ब्रह्म सचिदानन्दविग्रहः । पर ज्योतिः परं धाम पराकाशः परात्परः ॥ . परेशः पारगः पारः सर्वभूतात्मकः शिवः । इति श्रीरामचन्द्रस्य नानामष्टोत्तर शतम्। गुह्याद्रुह्यतरं देवि व स्नेहात् प्रकीर्तितम्॥ (२८१ । ३०-४८) रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे । रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥ (२८१।५५)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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