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________________ • अर्जयस्व सबीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . . [संक्षिप्त पद्मपुराण प्राप्त होता है। फिर मासके अन्तमें वैष्णवोंको भोजन करनेसे वह अपनी करोड़ो पीढ़ियोंका उद्धार करके करानेसे सबका फल अनन्त हो जाता है। आषाढ़मासमें वैष्णवपद (वैकुण्ठधाम) को प्राप्त होता है। श्रेष्ठ वैष्णव देवदेवेश्वर लक्ष्मीपतिकी प्रतिदिन श्रीपुष्पोंसे पूजा करे यदि सम्पूर्ण वेदोंके द्वारा भगवान्का यजन करनेमें और उन्हें खीरका भोग लगाये। फिर मासकी समाप्ति असमर्थ हो तो केवल वैष्णव अनुवाकोंद्वारा लगातार होनेपर उत्तम भगवद्भक्त ब्राह्मणोंको भोजन करावे । ऐसा सात राततक प्रतिदिन एक सहस्र पुष्पाञ्जलि समर्पण करे करनेसे वैष्णव पुरुष साठ हजार वर्षोंकी पूजाका फल और हविष्यसे हवन करके भगवान्का यजन करे। पाता है, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। श्रावणमासमें विद्वान् पुरुष विशेषतः श्रेष्ठ भगवद्भक्तोंका पूजन करे। नागकेसर और केवड़ेसे भक्तिपूर्वक श्रीविष्णुकी पूजा यज्ञान्तमें अपने वैभवके अनुसार अवभृथस्नानका उत्सव करनेसे मनुष्यका फिर इस लोकमें जन्म नहीं होता । उस करे। अवभृथस्नान भी उसे वैष्णव अनुवाकोंद्वारा ही समय भक्तिके साथ घी और शक्कर मिले हुए पूएका करना चाहिये। विधिपूर्वक स्नान करके एक सुन्दर पात्रमें नैवेद्य निवेदन करे और श्रेष्ठ भगवद्भक्त ब्राह्मणोंको आचार्यके चरणोंको भक्तिपूर्वक पखारे । फिर गन्ध, पुष्प, भोजन करावे। भादोंमें कुन्द और कटसरैयाके फूलोंसे वस्त्र और आभूषण आदिके द्वारा पूजा करे । यथाशक्ति पूजा करके खीर भोग लगावे। आश्विनमें नीलकमलसे ताम्बूल और फूलोंसे सत्कार करे और अन्न-पान आदिसे मधुसूदनकी पूजा करे और भक्तिके साथ उन्हें खीर-पूआ भोजन कराकर बारम्बार प्रणाम करे । जाते समय गाँवकी निवेदन करे। इसी प्रकार कार्तिकमे कोमल सीमातक पहुंचाने जाय और वहाँ प्रणाम करके उन्हें तुलसीदलोंके द्वारा भक्तिपूर्वक अच्युतका पूजन करनेसे विदा करे। उनका सायुज्य प्राप्त होता है। दूध, घी और शकरकी इस प्रकार जीवनभर आलस्य छोड़कर भगवान् बनी हुई मिठाई, खीर और मालपूआ-इन्हें भक्तिपूर्वक और उनके भक्तोंका विशेषरूपसे पूजन करना चाहिये। एक-एक करके भगवान्को निवेदन करे। समस्त आराधनाओंमें श्रीविष्णुको आराधना सबसे श्रेष्ठ अमावास्या तिथि, शनिवार, वैष्णवनक्षत्र है। उससे भी उनके भक्तोकी पूजा करनी अधिक श्रेष्ठ (श्रवण), सूर्यसंक्रान्ति, व्यतीपात, चन्द्रग्रहण और है। जो भगवान् गोविन्दकी पूजा करके उनके भक्तोका सूर्यग्रहणके अवसरपर अपनी शक्तिके अनुसार भगवान् पूजन नहीं करता, उसे भगवद्भक्त नहीं जानना चाहिये। विष्णुका विशेषरूपसे पूजन करे। श्रेष्ठ द्विजको उचित है वह केवल दम्भी है। अतः सर्वथा प्रयल करके कि गुरुके उत्क्रमणके दिन तथा श्रीहरिके अवतारोंके श्रीविष्णुभक्तोंका पूजन करना चाहिये। उनके पूजनसे जन्य-नक्षत्रोंमें अपनी शक्तिके अनुसार वैष्णव-याग मनुष्य समस्त दुःखराशिके पार हो जाता है। पार्वती ! करे। उसमें वेदमन्त्रोंका उच्चारण करके प्रत्येक ऋचाके इस प्रकार मैंने तुमसे श्रीविष्णुकी श्रेष्ठ आराधना, साथ भगवानको पुष्पाञ्जलि समर्पण करे। यथाशक्ति नित्य-नैमित्तिक कृत्य तथा भगवद्धक्तोको पूजाका वैष्णव ब्राह्मणोंको भोजन करावे और दक्षिणा दे। ऐसा वर्णन किया है। श्रीराम-नामकी महिमा तथा श्रीरामके १०८ नामका माहात्म्य पार्वतीजीने कहा-नाथ ! आपने उत्तम प्रसादसे धन्य और कृतकृत्य हो गयी। अब मैं भी वैष्णवधर्मका भलीभांति वर्णन किया। वास्तवमें सनातन देव श्रीहरिका पूजन करूंगी। परमात्मा श्रीविष्णुका स्वरूप गोपनीयसे भी अत्यन्त महादेवजी बोले-देवि ! बहुत अच्छा, बहुत गोपनीय है। सर्वदेववन्दित महेश्वर ! मैं आपके अच्छा ! तुम सम्पूर्ण इन्द्रियोंके स्वामी भगवान्
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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