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________________ गारखण्ड ] ... • श्रीविष्णु-पूजनकी विधि तथा वैष्णवोषित आधारका वर्णन • ९८९ पृथ्वीके महान् भारका नाश करके नन्दके व्रज, मथुरा ध्यान करता है, वह विजयी होता है। इस विषयमें बहुत और द्वारकामें रहनेवाले समस्त चराचर प्राणियोंको कहनेकी क्या आवश्यकता, जो सब कामनाओंका फल कालधर्मसे मुक्त किया। फिर उन्हें. अपने शाश्वत, प्राप्त करना चाहता हो, वह विद्वान् मनुष्य 'श्रीकृष्णाय योगिगम्य, हिरण्मय, रम्य एवं परमैश्वर्यमय पदमें स्थापित नमः' इस मन्त्रका उच्चारण करता रहे। 'सबको अपनी करके वे परमधाममें दिव्य पटरानियों आदिसे सेवित हो ओर खींचनेवाले कृष्ण, सबके हृदयमें निवास करनेवाले सानन्द निवास करने लगे।. वासुदेव, पाप-तापको हरनेवाले श्रीहरि, परमात्मा तथा पार्वती ! यह भगवान् श्रीकृष्णका अत्यन्त अद्भुत प्रणतजनोंका लेश दूर करनेवाले भगवान् योविन्दको चरित्र सब प्रकारके उत्तम फल प्रदान करनेवाला है। मैंने बारम्बार नमस्कार है। * जो प्रतिदिन भक्तिपूर्वक इस इसे संक्षेपमें ही कहा है। जो वासुदेवके इस चरित्रका मन्त्रका जप करता है, वह सब पापोसे मुक्त हो श्रीहरिके समीप पाठ, श्रवण अथवा चिन्तन करता है, श्रीविष्णुलोकको जाता है। भगवान् जनार्दन सम्पूर्ण वह भगवान्के परमपदको प्राप्त होता है। महापातक देवताओके ईश्वर है। वे समस्त लोकोंकी रक्षा करनेके अथवा उपपातकसे युक्त मनुष्य भी बालकृष्णके लिये ही भिन्न-भिन्न अवस्थाओको ग्रहण करते चरित्रको सुनकर सब पापोंसे मुक्त हो जाता है। द्वारकामें हैं। वे ही किसी विशेष उद्देश्यकी सिद्धिके लिये विराजमान रुक्मिणीसहित श्रीहरिका स्मरण करके मनुष्य बुद्धरूपमें अवतीर्ण होते है। कलियुगके अन्तमें एक निश्चय ही पापरहित हो महान् ऐश्वर्यरूप परमधामको ब्राह्मणके घरमें अवतीर्ण हो भगवान् जनार्दन समस्त प्राप्त होता है। जो संग्राममें, दुर्गम सङ्कटमें तथा शत्रुओंसे म्लेच्छोंका संहार करेंगे। ये सब जगदीश्वरको घिर जानेपर सब देवताओंके नेता भगवान् विष्णुका वैभवावस्थाएँ हैं। श्रीविष्णु-पूजनकी विधि तथा वैष्णवोचित आचारका वर्णन पार्वतीजीने कहा-भगवन् ! आपने श्रीहरिकी लकड़ो अथवा लोहा आदिसे श्रीहरिकी आकृति बनाकर वैभवावस्थाका पूरा-पूरा वर्णन किया। इसमें भगवान् श्रुति, स्मृति तथा आगममें बतायी हुई विधिके अनुसार श्रीराम और श्रीकृष्णका चरित्र बड़ा ही विस्मयजनक है। जो भगवान्को स्थापना होती है, वह 'स्थापित विग्रह' है अहो ! भगवान् श्रीराम और परमात्मा श्रीकृष्णकी लीला तथा जहाँ भगवान् अपने-आप प्रकट हुए हों, वह 'स्वयं कितनी अद्भुत है? देवेश्वर ! मैं तो इस कथाको सौ व्यक्त विग्रह' कहलाता है। भगवान्का विग्रह स्वयं कल्पोतक सुनती रहूँ तो भी मेरा मन कभी इससे तृप्त व्यक्त हो या स्थापित, उसका पूजन अवश्य करना नहीं होगा। अब मैं इस समय भगवान् विष्णुके उत्तम चाहिये। देवताओं और महर्षियोंके पूजनके लिये माहात्म्य और पूजन विधिका श्रवण करना चाहती हूँ। जगत्के स्वामी सनातन भगवान् विष्णु स्वयं ही श्रीमहादेवजीने कहा-देवि! मैं परमात्मा प्रत्यक्षरूपसे उनके सामने प्रकट हो जाते हैं। जिसका श्रीहरिके स्थापन और पूजनका वर्णन करता हैं, सुनो। भगवान्के जिस विग्रहमें मन लगता है, उसके लिये वे भगवान्का विग्रह दो प्रकारका बताया गया है-एक तो उसी रूपमें भूतलपर प्रकट होते है; अतः उसी रूपमें 'स्थापित' और दूसरा 'स्वयं व्यक्त ।' पत्थर, मिट्टी, भगवानका सदा पूजन करना चाहिये और उसीमें सदा * किमत्र , बहुनोक्तेन सर्वकामफलस्पृहः । कृष्णाय नम इत्येवं मन्त्रमुखारयेत् बुधः । .. कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने । प्रणतकेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः ॥ (२७१ । १०६-१०७)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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