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________________ ९६० • अयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [ संक्षिप्त पयपुराण मन्त्रियों, नगरके मुख्य-मुख्य व्यक्तियों तथा सेनासहित स्तुति कर रहे थे। फिर भरत, सुग्रीव, शत्रुन, विभीषण, अनेक राजाओंको साथ ले प्रसन्नतापूर्वक आगे आकर अङ्गद, सुषेण, जाम्बवान्, हनुमान, नील, नल, सुभग, बड़े भाईकी अगवानी की। रघुकुलश्रेष्ठ श्रीरामचन्द्रजीके शरभ, गन्धमादन, अन्यान्य कपि, निषादराज गुह, निकट पहुँचकर भरतने अनुयायियोंसहित उन्हें प्रणाम महापराक्रमी राक्षस और महाबली राजा भी बहुत-से किया। फिर शत्रुओंको ताप देनेवाले श्रीरघुनाथजीने घोड़े, 'हाथी और रथोंपर आरूढ़ हुए। उस समय नाना विमानसे उतरकर भरत और शत्रुघ्नको छातीसे लगाया। प्रकारके माङ्गलिक बाजे बजने लगे तथा नाना प्रकारके तत्पश्चात् पुरोहित वसिष्ठजी, माताओं, बड़े-बूढ़ों तथा स्तोत्रोंका गान होने लगा। इस प्रकार वानर, भालू, बन्धु-बान्धवोंको महातेजस्वी श्रीरामने सीता और राक्षस, निषाद और मानव सैनिकोंके साथ महातेजस्वी लक्ष्मणके साथ प्रणाम किया। इसके बाद भरतजीने श्रीरघुनाथजीने अपने अविनाशी नगर साकेतधाम विभीषण, सुप्रीव, जाम्बवान, अङ्गद, हनुमान् और (अयोध्या) में प्रवेश किया। मार्गमें उस राजनगरीकी सुषेणको गले लगाया। वहाँ भाइयों और अनुचरोसहित शोभा देखते हुए श्रीरघुनाथजीको बारंबार अपने पिता भगवान्ने माङ्गलिक स्रान करके दिव्य माला और दिव्य महाराज दशरथकी याद आने लगी। तत्पश्चात् सुग्रीव, वस्त्र धारण किये, फिर दिव्य चन्दन लगाया। इसके बाद हनुमान् और विभीषण आदि भगवद्भक्तोंके पावन वे सीता और लक्ष्मणके साथ सुमन्त्र नामक सारथिसे चरणोंके पड़नेसे पवित्र हुए राजमहलमें उन्होंने सञ्चालित दिव्य रथपर बैठे। उस समय देवगण उनको प्रवेश किया। श्रीरामके राज्याभिषेकसे परमधामगमनतकका प्रसन श्रीमहादेवजी कहते हैं-पार्वती ! तदनन्तर पुष्पोंसे श्रीसीतादेवीके साथ श्रीरघुनाथजीका शृङ्गार किसी पवित्र दिनको शुभ लग्नमें मङ्गलमय भगवान् किया। उस समय लक्ष्मणने दिव्य छत्र और चैवर धारण श्रीरामका राज्याभिषेक करनेके लिये लोगोंने माङ्गलिक किये। भरत और शत्रुघ्न भगवानके दोनों बगलमें खड़े उत्सव मनाना आरम्भ किया । वसिष्ठ, वामदेव, जाबालि, होकर ताड़के पंखोंसे हवा करने लगे। राक्षसराज कश्यप, मार्कण्डेय, मौद्गल्य, पर्वत और नारद-ये विभीषणने सामनेसे दर्पण दिखाया। वानरराज सुग्रीव महर्षि जप और होम करके राजशिरोमणि श्रीरघुनाथजीका भरा हुआ कलश लेकर खड़े हुए। महातेजस्वी शुभ अभिषेक करने लगे। नाना रत्नोंसे निर्मित दिव्य जाम्बवान्ने मनोहर फूलोंकी माला पहनायो । बालिकुमार सुवर्णमय पीढ़ेपर सीतासहित भगवान् श्रीरामको अङ्गदने श्रीहरिको कपूर मिला हुआ पान अर्पण किया। बिठाकर उत्तम व्रतका पालन करनेवाले महर्षि सोने और हनुमानजीने दिव्य दीपक दिखाया। सुषेणने सुन्दर झंडा रत्नोंके कलशोंमें रखे हुए सब तीर्थोके शुद्ध एवं मन्त्रपूत फहराया। सब मन्त्री महात्मा श्रीरामको चारों ओरसे जलसे, जिसमें पवित्र माङ्गलिक वस्तुएँ, दूर्वादल, घेरकर उनकी सेवामें खड़े हुए। मन्त्रियोंके नाम इस तुलसीदल, फूल और चन्दन आदि पड़े थे, उनका प्रकार थे-सृष्टि, जयन्त, विजय, सौराष्ट्र, राष्ट्रवर्धन, मङ्गलमय अभिषेक करने और चारों वेदोंके वैष्णव अकोप, धर्मपाल तथा सुमन्त्र । नाना जनपदोंके स्वामी सूक्तोंको पढ़ने लगे। उस शुभ लग्नके समय आकाशमें नरश्रेष्ठ नृपतिगण, पुरवासी, वैदिक विद्वान् तथा बड़े-बूढ़े देवताओंकी दुन्दुभियाँ बजती थीं। चारों ओरसे फूलोंकी सज्जन भी महाराजकी सेवामें उपस्थित थे। वानर, वर्षा होती थी। वेदोंके पारगामी मुनियोंने दिव्य वस्त्र, भालू, मन्त्री, राजा, राक्षस, श्रेष्ठ द्विज तथा सेवकोंसे घिरे दिव्य आभूषण, दिव्य गन्ध और नाना प्रकारके दिव्य हुए महाराज श्रीराम साकेतधाम (अयोध्या) में इस
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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