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उत्तरखण्ड ]
. श्रीरामका जातकर्म, नामकरण, भरत आदिका जन्म तथा राम आदिका विवाह .
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श्रीरामका जातकर्म, नामकरण, भरत आदिका जन्म, सीताकी उत्पत्ति, विश्वामित्रकी
यज्ञरक्षा तथा राम आदिका विवाह
तत्पश्चात् राजा दशरथने बड़ी प्रसन्नताके साथ कानोंमें सम्पूर्ण दिशाएँ, नेत्रोंमें अग्नि और सूर्य तथा पुरोहित वसिष्ठजीके द्वारा बालकका जातकर्म-संस्कार नासिकामे महान् वेगशाली वायुदेव विराजमान थे। कराया। भगवान् वसिष्ठने उस समय बालकका बड़ा पार्वती ! सम्पूर्ण उपनिषदोंके तात्पर्यभूत भगवान्को सुन्दर नाम रखा। वे बोले-'ये महाप्रभु कमलमें देखकर रानी कौसल्या भयभीत हो गयीं और बारम्बार निवास करनेवाली श्रीदेवीके साथ रमण करनेवाले हैं, प्रणाम करके नेत्रोंसे आनन्दके आँसू बहाती हुई हाथ इसलिये इनका परम प्राचीन स्वतःसिद्ध नाम 'श्रीराम' जोड़कर बोलीं- 'देवदेवेश्वर! प्रभो! आपको होगा। यह नाम भगवान् विष्णुके सहस्र नामोंके समान पुत्ररूपमें पाकर मैं धन्य हो गयी। जगत्राथ ! अब है तथा मनुष्योंको मुक्ति प्रदान करनेवाला है। चैत मास मुझपर प्रसन्न होइये और मेरे भीतर पुत्रस्नेहको श्रीविष्णुका मास है। इसमें प्रकट होनेके कारण यह जाग्रत् कीजिये। विष्णु भी कहलायेंगे।*
माताके ऐसा कहनेपर सर्वव्यापक श्रीहरि मायासे इस प्रकार नाम रखकर महर्षि वसिष्ठने नाना मानवभाव तथा शिशुभावको प्राप्त होकर रुदन करने प्रकारकी स्तुतियोंसे भगवान्का स्तवन किया और लगे। फिर तो देवी कौसल्याने आनन्दमग्न होकर उत्तम बालकके मङ्गलके लिये सहस्रनामका पाठ करके वे उस लक्षणोंवाले अपने पुत्रको छतीसे लगा लिया और परम पवित्र राजभवनसे बाहर निकले। राजा दशरथने उसके मुखमें स्तन डाल दिया। संसारका भरण-पोषण श्रेष्ठ ब्राह्मणोंको प्रसन्नतापूर्वक बहुत धन दिया तथा करनेवाले सनातन देवता महाप्रभु श्रीहरि बालकरूपसे धर्मपूर्वक दस हजार गौएँ दान की। इतना ही नहीं, उन माताकी गोदमें लेटकर उनका स्तन पान करने लगे। वह रघुकुलश्रेष्ठ राजाने श्रीविष्णुकी प्रसन्नताके लिये एक दिन बड़ा ही सुन्दर रमणीय और मनुष्योंकी समस्त लाख गाँव दान किये और दिव्य वख, दिव्य आभूषण कामनाओंको पूर्ण करनेवाला था। नगर और प्रान्तके तथा असंख्य धन देकर ब्राह्मणोंको तृप्त किया। महारानी सब मनुष्योंने बड़ी प्रसत्रताके साथ उस दिन भगवान्का कौसल्याने जब अपने पुत्र श्रीरामकी ओर दृष्टिपात किया जन्मोत्सव मनाया। तदनन्तर कैकेयीके गर्भसे भरतका तो उनके श्रीचरणों और करकमलोमे शङ्ख, चक्र, गदा, जन्म हुआ। वे पाञ्चजन्य शङ्खके अंशसे प्रकट हुए थे। पद्म, ध्वजा और वन आदि चिह्न दिखायी दिये। इसके बाद महाभागा सुमित्राने उत्तम लक्षणोंवाले वक्षःस्थलमें श्रीवत्सका चिह्न, कौस्तुभमणि और लक्ष्मणको तथा देवशत्रुओको सन्ताप देनेवाले शत्रुधको वनमाला सुशोभित थी। उनके श्रीअङ्गमें देवता, असुर जन्म दिया। शत्रुपक्षके वीरोका संहार करनेवाले
और मनुष्योसहित सम्पूर्ण जगत् दृष्टिगोचर हुआ। श्रीलक्ष्मण भगवान् अनन्तके अंशसे और अमित मुसकराते हुए मुखके भीतर चौदहों भुवन दिखायी देते पराक्रमी शत्रुघ्न सुदर्शनके अंशसे प्रकट हुए थे। वैवस्वत थे। उनके निःश्वासमें इतिहाससहित सम्पूर्ण वेद, जाँघोंमें मनुके वंशमें जन्म लेनेवाले वे सभी बालक क्रमशः बड़े द्वीप, समुद्र और पर्वत, नाभिमें ब्रह्मा तथा महादेवजी, हुए। फिर महातेजस्वी महर्षि वसिष्ठने सबका विधिपूर्वक
* श्रियः कमलवासिन्या रमणोऽयं महाप्रभुः । तस्माच्छीराम इत्यस्य नाम सिद्ध पुरातनम् ॥ सहस्रनाम्रा श्रीशस्य तुल्यं मुक्तिप्रदं नृणाम् । विष्णुमासि समुत्पश्ये विष्णुरित्यभिधीयते ॥ (२६९।७४-७५)