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________________ उत्तरखण्ड] . महात्मा पुष्करके द्वारा नरक में पड़े हुए जीवोंका हार . . . . . . . . . . . . . . . . . . . भयङ्कर दूतोंको आज्ञा दी–‘जाओ, नन्दिप्राम-निवासी नरकके जीवोंने कहा-विप्रवर ! हमने पुष्कर नामक ब्राह्मणको यहाँ पकड़ ले आओ।' यह पृथ्वीपर कोई पुण्य नहीं किया था। इसीसे इस यातनामें आदेश सुनकर और यमराजके बताये हुए पुष्करको न पड़कर जलते और बहुत कष्ट उठाते हैं। हमने परायी पहचानकर वे इन महात्मा पुष्करको ही यमलोकमें पकड़ स्त्रियोंसे अनुराग किया, दूसरोंके धन चुराये, अन्य लाये। ब्राह्मण पुष्करको आते देख यमराज मन-ही-मन जीवोंकी हिंसा की, बिना अपराध ही दूसरोंपर लाञ्छन भयभीत हो गये और आसनसे उठकर खड़े हो गये। लगाये, ब्राह्मणोंकी निन्दा की और जिनके भरणफिर मुनिको आसनपर बिठाकर उन्होंने दूतोंको पोषणका भार अपने ऊपर था, उनके भोजन किये बिना फटकारा-'तुमलोगोंने यह क्या किया? मैंने तो दूसरे ही हम सबसे पहले भोजन कर लेते थे। इन्हीं सब पुष्करको लानेके लिये कहा था। तुमलोगोंके कितने पापोंके कारण हमलोग इस नरकाग्निमें दग्ध हो रहे हैं। पापपूर्ण विचार हैं। भला, इन सब धर्मोके ज्ञाता, प्यासी गौएँ जब जलकी ओर दौड़ती हुई जाती, तो हम विशेषतः भगवान् विष्णुके भक्त, सदा माघस्रान सदा उनके पानी पीनेमें विघ्न डाल दिया करते थे। करनेवाले और उपवास-परायण महात्मा पुरुषको यहाँ गौओंको कभी खिलाते-पिलाते नहीं थे, तो भी उनका मेरे समीप क्यों ले आये?' दूध दुहकर पेट पालने में लगे रहते थे। याचकोको दान दूतोंको इस प्रकार डाँट बताकर प्रेतराज यमने देनेमें लगे हुए धार्मिक पुरुषोंके कार्यमें रोड़े अटकाया पुष्करसे कहा-'ब्रह्मन् ! तुम्हारे पुत्र और स्त्री आदि करते थे। अपनी खियोको त्याग दिया था। व्रतसे भ्रष्ट सब बान्धव बहुत व्याकुल होकर रो रहे हैं; अतः तुम हो गये थे। दूसरेके अनमें ही सदा रुचि रखते थे। भी अभी जाओ।' तब पुष्करने यमसे कहा- पर्वोपर भी स्त्रियोंके साथ रमण करते थे। ब्राह्मणोंको 'भगवन् ! जहाँ पापी पुरुष यातनामय शरीर धारण करके देनेकी प्रतिज्ञा करके भी लोभवश उन्हें दान नहीं दिया। कष्ट भोगते हैं, उन सब नरकोंको मैं देखना चाहता हूँ। हम धरोहर हड़प लेते थे, मित्रोंसे द्रोह करते तथा झूठी यह सुनकर सूर्यकुमार यमने पुष्करको सैकड़ों और गवाही देते रहते थे। इन्हीं सब पापोंके कारण आज हम हजारों नरक दिखलाये। पुष्करने देखा, पापी जीव दग्ध हो रहे हैं। नरको पड़कर बड़ा कष्ट भोगते हैं। कोई शूलीपर चढ़े पुष्करने कहा-क्या आपलोगोंने भगवान् हैं, किन्हींको व्याघ्र खा रहा है, जिससे वे अत्यन दुःखित जनार्दनका एक बार भी पूजन नहीं किया? इसीसे आप हैं। कोई तपी हुई बालूपर जल रहे हैं। किन्हींको कीड़े ऐसी भयानक दशाको पहुँचे है। जिन्होंने समस्त लोकोके खा रहे हैं। कोई जलते हुए घड़ेमें डाल दिये गये हैं। स्वामी भगवान् पुरुषोत्तमका पूजन किया है, उन कोई कीड़ोंसे पीड़ित हैं। कोई असिपत्रवनमें दौड़ रहे है, मनुष्योंका मोक्षतक हो सकता हैफिर पापक्षयकी तो जिससे उनके अङ्ग छिन्न-भिन्न हो रहे है। किन्हींको वात ही क्या है ? प्रायः आपलोगोंने श्रीपुरुषोत्तमके आरोंसे चीरा जा रहा है। कोई कुल्हाड़ोंसे काटे जाते हैं। चरणोंमें मस्तक नहीं झुकाया है। इसीसे आपको इस किन्हींको खारी कीचड़में कष्ट भोगना पड़ता है। अत्यन्त भयङ्कर नरककी प्राप्ति हुई है। अब यहाँ किन्हींको सूई चुभो-चुभोकर गिराया जाता है और कोई हाहाकार करनेसे क्या लाभ? निरन्तर भगवान् श्रीहरिका सर्दीसे पीड़ित हो रहे हैं। उनको तथा अन्य जीवोंको स्मरण कीजिये। वे श्रीविष्णु समस्त पापोंका नाश नरकमें पड़कर यातना भोगते देख पुष्करको बड़ा दुःख करनेवाले हैं। मैं भी यहाँ जगदीश्वरके नामोंका कीर्तन हुआ। वे उनसे बोले-'क्या आपलोगोंने पूर्वजन्ममें करता हूँ। वे नाम निश्चय ही आपका कल्याण करेंगे। कोई पुण्य नहीं किया था, जिससे यहाँ यातनामें पड़कर नरकके जीवोंने कहा-ब्रह्मन् ! हमारा आप सदा दुःख भोगते है?' अन्तःकरण अपवित्र है। हम अपने पापसे सन्तप्त है।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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