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________________ उत्तरखण्ड • यमलोकसे लौटी हुई कन्याओके द्वारा वहाँकी अनुभूत बातोंका वर्णन • ८९५ ब्राह्मण-कन्याओंको उनके शरीरमें भेज दिया। फिर तो अन्तर्धान हो गये। इधर ब्राह्मण भी यमराजसे वर पाकर सोकर उठे हुएकी भाँति वे कन्याएँ उठ खड़ी हुई। अपनी बड़ी प्रसन्नताके साथ अपने आश्रमको लौटे । जो मानव बालिकाओको सचेत होते देख माताओंको बड़ा हर्ष प्रतिदिन यमराजकी इस स्तुतिका पाठ करेगा, उसे कभी हुआ। कन्याएँ पहलेकी ही भांति अपना-अपना वस्त्र यम-यातना नहीं भोगनी पड़ेगी, उसके ऊपर यमराज पहनकर माताओंको बुला उनके साथ अपने घर गयीं। प्रसन्न होंगे, उसकी सन्ततिका कभी अपमृत्युसे पराभव न वसिष्ठजी कहते हैं-इस प्रकार विप्रवर होगा, उसे इस लोक और परलोकमें भी लक्ष्मीकी प्राप्ति मृगङ्गको वरदान दे यम देवता अपने पार्षदोंके साथ होगी तथा उसे कभी रोगोंका शिकार नहीं होना पड़ेगा। यमलोकसे लौटी हुई कन्याओंके द्वारा वहाँकी अनुभूत बातोंका वर्णन राजा दिलीपने पूछा-मुने! यमलोकसे लोगोंके सैकड़ों, हजारों विचित्र-विचित्र विमान वहाँ लौटकर आयी हुई उन साध्वी कन्याओंने अपनी माताओं शोभा पाते हैं। इन पुण्यात्मा जीवोंको विमानपर बैठकर और बन्धुओंसे वहाँका वृत्तान्त कैसा बतलाया? आते देख सूर्यनन्दन यम अपने आसनसे उठकर खड़े हो पापियोंकी यातना और पुण्यात्माओंकी गतिके सम्बन्धमे जाते हैं और अपने पार्षदोंके साथ जाकर उन सबको क्या कहा? मैं पुण्य और पापके शुभ और अशुभ अगवानी करते हैं। फिर स्वागतपूर्वक आसन दे, फलोको विस्तारके साथ सुनना चाहता हूँ। पाद्य-अर्घ्य आदि निवेदन कर प्रिय वचनोंमें कहते हैं वसिष्ठजी बोले-राजन् ! कन्याओने अपनी 'आपलोग अपने आत्माका कल्याण करनेवाले महात्मा माताओं और बन्धुओंसे पुण्य-पापके शुभाशुभ फलोंके हैं, अतएव धन्य हैं; क्योंकि आपने दिव्य सुखकी प्राप्तिके विषयमें जो कुछ कहा था, वह ज्यों-का-त्यों तुम्हें लिये पुण्यका उपार्जन किया है। अतः आप इस बतलाता हूँ। विमानपर बैठकर स्वर्गको जाइये। स्वर्गलोककी कहीं कन्याओंने कहा-माताओ ! यमलोक बड़ा ही तुलना नहीं है, वह सब प्रकारके दिव्य भोगोसे परिपूर्ण घोर और भय उत्पन्न करनेवाला है। वहाँ सर्वदा चारों है।' इस प्रकार उनकी अनुमति ले पुण्यात्मा पुरुष प्रकारके जीवोंको विवश होकर जाना पड़ता है। गर्भमें स्वर्गलोकमें जाते हैं। रहनेवाले अथवा जन्म लेनेवाले शिशु, बालक, तरुण, माताओ ! तथा बन्धुजन ! अब हम वहाँक पापी अधेड़, बूढ़े, स्त्री, पुरुष और नपुंसक-सभी तरहके जीवोंके कष्टका वर्णन करती हैं, आप सब लोग धैर्य जीवोंको वहाँ जाना होता है। वहाँ चित्रगुप्त आदि धारण करके सुनें। जो क्रूरतापूर्ण कर्म करनेवाले और समदर्शी एवं मध्यस्थ सत्पुरुष मिलकर देहधारियोंके दान न देनेवाले पापी जीव है, वे वहाँ यमराजके घरमें शुभ और अशुभ फलका विचार करते हैं। इस लोकमें अत्यन्त भयंकर दक्षिणमार्गसे जाते हैं। यमराजका नगर जो शुभ कर्म करनेवाले, कोमलहृदय तथा दयालु पुरुष अनेक रूपोंमें स्थित है, उसका विस्तार चारों ओरसे हैं, वे सौम्य मार्गसे यमलोकमें जाते हैं। नाना प्रकारके छियासी हजार योजन समझना चाहिये। पुण्यकर्म दान और व्रतोंमें संलग्न रहनेवाले स्त्री-पुरुषोंसे सूर्यनन्दन करनेवाले पुरुषोंको वह बहुत निकट-सा जान पड़ता है, यमकी नगरी भरी है। माघस्रान करनेवाले लोग वहाँ किन्तु भयंकर मार्गसे जानेवाले पापी जीवोंके लिये वह विशेषरूपसे शोभित होते हैं। धर्मराज उनका अधिक अत्यन्त दूर है। वह मार्ग कहीं तो तीखे काँटोंसे भरा सम्मान करते हैं। वहां उनके लिये सब प्रकारकी होता है और कहीं रेत एवं कंकड़ोंसे । कहीं पत्थरोके ऐसे भोगसामग्री सुलभ होती है । माघस्नानमें मन लगानेवाले टुकड़े बिछे होते हैं, जिनका किनारा छुरोको धारके समान
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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