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________________ सृष्टिखण्ड ] www.w • आदित्य शयन आदि व्रत, तडागकी प्रतिष्ठा और वृक्षारोपणकी विधि • चाहिये। वे चारों ओरसे एक समान एक रंगकी बनी हों। सबके समीप ध्वजा और पताकाएँ लगायी जायें। मण्डपके चारों ओर क्रमशः पीपल, गूलर, पाकड़ और बरगदकी शाखाओंके दरवाजे बनाये जायें। वहाँ आठ होता, आठ द्वारपाल तथा आठ जप करनेवाले ब्राह्मणोंका वरण किया जाय। वे सभी ब्राह्मण वेदोंके पारगामी विद्वान् होने चाहिये। सब प्रकारके शुभ लक्षणोंसे सम्पन्न, मन्त्रोंके ज्ञाता, जितेन्द्रिय, कुलीन, शीलवान् एवं श्रेष्ठ ब्राह्मणोंको ही इस कार्यमें नियुक्त करना चाहिये । प्रत्येक कुण्डके पास कलश, यज्ञसामग्री, निर्मल आसन और दिव्य एवं विस्तृत ताम्रपात्र प्रस्तुत रहें। तदनन्तर प्रत्येक देवताके लिये नाना प्रकारकी बलि (दही, अक्षत आदि उत्तम भक्ष्य पदार्थ) उपस्थित करे। विद्वान् आचार्य मन्त्र पढ़कर उन सामग्रियोंके द्वारा पृथ्वीपर सब देवताओंके लिये बलि समर्पण करे। अरलिके बराबर एक यूप ( यज्ञस्तम्भ ) स्थापित किया जाय, जो किसी दूधवाले, वृक्षकी शाखाका बना हुआ हो। ऐश्वर्य चाहनेवाले पुरुषको यजमानके शरीरके बराबर ऊँचा यूप स्थापित करना चाहिये। उसके बाद पच्चीस ऋत्विजोंका वरण करके उन्हें सोनेके आभूषणोंसे विभूषित करे। सोनेके बने कुण्डल, बाजूबंद, कड़े, अंगूठी, पवित्री तथा नाना प्रकारके वस्त्र – ये सभी आभूषण प्रत्येक ऋत्विजको बराबर-बराबर दे और आचार्यको दूना अर्पण करे। इसके सिवा उन्हें शय्या तथा अपनेको प्रिय लगनेवाली अन्यान्य वस्तुएँ भी प्रदान करे। सोनेका बना हुआ कछुआ और मगर, चाँदीके मत्स्य और दुन्दुभ, ताँबेके केंकड़ा और मेढक तथा लोहेके दो सूँस बनवाकर सबको सोनेके पात्रमें रखे । इसके बाद यजमान वेदज्ञ विद्वानोंकी बतायी हुई विधिके अनुसार सर्वौषधि मिश्रित जलसे स्नान करके श्वेत वस्त्र और श्वेत माला धारण करे। फिर श्वेत चन्दन लगाकर पत्नी और पुत्र-पौत्रोंके साथ पश्चिमद्वारसे यज्ञ मण्डपमें प्रवेश करे। उस समय माङ्गलिक शब्द होने चाहिये और भेरी आदि बाजे बजने चाहिये। ८७ तदनन्तर विद्वान् पुरुष पाँच रंगके चूर्णोंसे मण्डल बनाये और उसमें सोलह अरोंसे युक्त चक्र चिह्नित करे। उसके गर्भमें कमलका आकार बनाये। चक्र देखनेमें सुन्दर और चौकोर हो। चारों ओरसे गोल होनेके साथ ही मध्यभागमें अधिक शोभायमान जान पड़ता हो। उस चक्रको वेदीके ऊपर स्थापित करके उसके चारों ओर प्रत्येक दिशामें मन्त्र-पाठपूर्वक ग्रहों और लोकपालोंकी स्थापना करे। फिर मध्यभागमें वरुण सम्बन्धी मन्त्रोंका उच्चारण करते हुए एक कलश स्थापित करे और उसीके ऊपर ब्रह्मा, शिव, विष्णु, गणेश, लक्ष्मी तथा पार्वतीकी भी स्थापना करे। इसके पश्चात् सम्पूर्ण लोकोंकी शान्तिके लिये भूतसमुदायको स्थापित करे। इस प्रकार पुष्प, चन्दन और फलोंके द्वारा सबकी स्थापना करके कलशोंके भीतर पञ्चरत्न छोड़कर उन्हें वस्त्रोंसे आवेष्टित कर दे। फिर पुष्प और चन्दनके द्वारा उन्हें अलङ्कृत करके द्वार रक्षाके लिये नियुक्त ब्राह्मणोंसे वेदपाठ करनेके लिये कहे और स्वयं आचार्यका पूजन करे। पूर्व दिशाकी ओर दो ऋग्वेदी, दक्षिणद्वारपर दो यजुर्वेदी, पश्चिमद्वारपर दो सामवेदी तथा उत्तरद्वारपर दो अथर्ववेदी विद्वानोंको रखना चाहिये। यजमान मण्डलके दक्षिणभागमें उत्तराभिमुख होकर बैठे और द्वार-रक्षक विद्वानोंसे कहे- 'आपलोग वेदपाठ करें। फिर यज्ञ करानेवाले आचार्यसे कहे आप यज्ञ प्रारम्भ करायें। तत्पश्चात् जप करनेवाले ब्राह्मणोंसे कहे — 'आपलोग उत्तम मन्त्रका जप करते रहें। इस प्रकार सबको प्रेरित करके मन्त्रज्ञ पुरुष अग्रिको प्रज्वलित करे तथा मन्त्र- पाठपूर्वक घी और समिधाओंकी आहुति दे ऋत्विजोंको भी वरुण सम्बन्धी मन्त्रोंद्वारा सब ओरसे हवन करना चाहिये। ग्रहोंके निमित्त विधिवत् आहुति देकर उस यज्ञकर्ममें इन्द्र शिव, मरुद्रण और लोकपालोंके निमित्त भी विधिपूर्वक होम करे। पूर्वद्वारपर नियुक्त ऋग्वेदी ब्राह्मण शान्ति, रुद्र, पवमान, सुमङ्गल तथा पुरुषसम्बन्धी सूक्तोंका पृथक्पृथक् जप करे। दक्षिणद्वारपर स्थित यजुर्वेदी विद्वान् इन्द्र, रुद्र, सोम, कूष्माण्ड, अग्नि तथा सूर्य-सम्बन्धी
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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