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________________ उत्तरखण्ड ] • देवर्षि नारदकी सनकादिसे भेंट, भक्ति, ज्ञान और वैराग्यके वृत्तान्तका वर्णन . ८४५ समाप्त हुआ। इसके श्रवणमात्रसे मनुष्य सब पापोंसे पुरुष श्रद्धायुक्त होकर इसका श्रवण करता है, वह छुटकारा पा जाता है। इस प्रकार सम्पूर्ण गीताका समस्त यज्ञोंका फल पाकर अन्तमें श्रीविष्णुका सायुज्य पापनाशक माहात्य बतलाया गया। महाभागे ! जो प्राप्त कर लेता है। १ देवर्षि नारदकी सनकादिसे भेंट तथा नारदजीके द्वारा भक्ति. ज्ञान - और वैराग्यके वृत्तान्तका वर्णन पार्वतीजीने कहा-भगवन् ! समस्त पुराणोंमें सबसे अधिक कल्याणकारी, पवित्रको भी पवित्र श्रीमद्भागवत श्रेष्ठ है, क्योंकि उसके प्रत्येक पदमें करनेवाला तथा सदाके लिये भगवान् श्रीकृष्णकी प्राप्ति महर्षिद्वारा भगवान् श्रीकृष्णकी महिमाका नाना प्रकारसे करा देनेवाला हो। चिन्तामणि केवल लौकिक सुख देती गान किया गया है; अतः इस समय उसीके माहात्म्यका है, कल्पवृक्ष स्वर्गतककी सम्पत्ति दे सकता है, किन्तु यदि इतिहाससहित वर्णन कीजिये। गुरुदेव प्रसन्न हो जायें तो वे योगियोंको भी कठिनतासे श्रीमहादेवजीने कहा-जिनका अभी यज्ञोपवीत- मिलनेवाला नित्य वैकुण्ठधामतक दे सकते हैं। संस्कार भी नहीं हुआ था तथा जो समस्त लौकिक- सूतजीने कहा-शौनकजी ! आपके हृदयमें वैदिक कृत्योंका परित्याग करके घरसे निकले जा रहे थे, भगवत्कथाके प्रति प्रेम है; अतः मैं भलीभाँति विचार ऐसे शुकदेवजीको बाल्यावस्थामें ही संन्यासी होते देख करके सम्पूर्ण सिद्धान्तोंद्वारा अनुमोदित और संसारउनके पिता श्रीकृष्णद्वैपायन विरहसे कातर हो उठे और जनित भयका नाश करनेवाले सारभूत साधनका वर्णन 'बेटा ! बेटा !! तुम कहाँ चले जा रहे हो ?' इस प्रकार करता हूँ। वह भक्तिको बढ़ानेवाला तथा भगवान् पुकारने लगे। उस समय शुकदेवजीके साथ एकाकार श्रीकृष्णकी प्रसत्रताका प्रधान हेतु है। आप उसे होनेके कारण वृक्षोंने ही उनकी ओरसे उत्तर दिया था। सावधान होकर सुनें । कलियुगमें कालरूपी सर्पसे इसे ऐसे सम्पूर्ण भूतोंके हृदयमें आत्मारूपसे विराजमान परम जानेके भयको दूर करनेके लिये ही श्रीशुकदेवजीने ज्ञानी श्रीशुकदेव मुनिको मैं प्रणाम करता हूँ। श्रीमद्भागवत-शास्त्रका उपदेश किया है। मनकी शुद्धिके एक समय भगवत्कथाका रसास्वादन करनेमें लिये इससे बढ़कर दूसरा कोई साधन नहीं है। जब कुशल परम बुद्धिमान् शौनकजीने नैमिषारण्यमें जन्म-जन्मान्तरोंका पुण्य उदय होता है तब कहीं विराजमान सूतजीको नमस्कार करके पूछा। श्रीमद्भागवत-शास्त्रको प्राप्ति होती है। जिस समय शौनकजी बोले-सूतजी ! आप इस समय कोई श्रीशुकदेवजी राजा परीक्षितको कथा सुनानेके लिये ऐसी सारगर्भित कथा कहिये, जो हमारे कानोंको अमृतके सभामें विराजमान हुए, उस समय देवतालोग अमृतका समान मधुर जान पड़े तथा जो अज्ञानान्धकारका विध्वंस कलश लेकर उनके पास आये। देवता अपना कार्य और कोटि-कोटि जन्मोंके पापोंका नाश करनेवाली हो। साधन करने में बड़े चतुर होते हैं। वे सब-के-सब भक्ति, ज्ञान और वैराग्यसे प्राप्त होनेवाला विज्ञान कैसे श्रीशुकदेवजीको नमस्कार करके कहने लगे-'मुने! बढ़ता है तथा वैष्णवलोग किस प्रकार माया-मोहका आप यह अमृत लेकर बदले में हमें कथामृतका दान निवारण करते हैं। इस घोर कलिकालमें प्रायः जीव दीजिये। इस प्रकार परिवर्तन करके राजा परीक्षित् असुर-स्वभावके हो गये हैं, इसीलिये वे नाना प्रकारके अमृतका पान करें और अमर हो जायें) तथा हम सब क्लेशोंसे घिरे रहते हैं; अतः उनकी शुद्धिका सर्वश्रेष्ठ उपाय लोग श्रीमद्भागवतामृतका पान करेंगे। तब क्या है ? इस समय हमें ऐसा कोई साधन बताइये, जो श्रीशुकदेवजीने सोचा-'इस लोकमें कहाँ अमृत और
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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