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________________ • अर्चयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पापुराण MERAMAILORA M MARE.... ... m aratient ........ पूर्वजन्ममें अभ्यास किये हुए दसवें अध्यायके माहात्म्यसे: पार्वती ! इस प्रकार मैंने भृङ्गिरिटिके सामने जो इसको दुर्लभ तत्त्वज्ञान प्राप्त है तथा इसने जीवन्मुक्ति भी पापनाशक कथा कही थी, वही यहाँ तुमसे भी कही है। पा ली है। अतः जब यह रास्ता चलने लगता है तो मैं नर हो या नारी, अथवा कोई भी क्यों न हो, इस दसवें इसे हाथका सहारा दिये रहता हूँ। भृङ्गिरिटे! यह सब अध्यायके श्रवणमात्रसे उसे सब आश्रमोंके पालनका दसवें अध्यायकी ही महामहिमा है। फल प्राप्त होता है। श्रीमद्भगवद्गीताके ग्यारहवें अध्यायका माहात्म्य - श्रीमहादेवजी कहते हैं-प्रिये ! गीताके वर्णनसे नृसिंहका दर्शन करनेसे मनुष्य सात जन्मोंके किये हुए सम्बन्ध रखनेवाली कथा एवं विश्वरूप अध्यायके पावन घोर पापसे छुटकारा पा जाता है। जो मनुष्य मेखलामें माहात्यको श्रवण करो। विशाल नेत्रोंवाली पार्वती । इस गणेशजीका दर्शन करता है, वह सदा दुस्तर विनोंके भी अध्यायके माहात्म्यका पूरा-पूरा वर्णन नहीं किया जा पार हो जाता है। सकता। इसके सम्बन्धमें सहस्रों कथाएँ हैं। उनमेंसे एक ., उसी मेघङ्कर नगरमें कोई श्रेष्ठ ब्राह्मण थे, जो यहाँ कही जाती है। प्रणीता नदीके तटपर मेघङ्कर नामसे ब्रह्मचर्यपरायण, ममता और अहङ्कारसे रहित, वेदविख्यात एक बहुत बड़ा नगर है। उसके प्राकार और शास्त्रोंमें प्रवीण, जितेन्द्रिय तथा भगवान् वासुदेवके गोपुर बहुत ऊँचे हैं। वहाँ बड़ी-बड़ी विश्रामशालाएँ हैं, शरणागत थे। उनका नाम सुनन्द था। प्रिये ! वे जिनमें सोनेके खंभे शोभा दे रहे हैं। उस नगरमें श्रीमान्, शार्ङ्गधनुष धारण करनेवाले भगवानके पास गीताके सुखी, शान्त, सदाचारी तथा जितेन्द्रिय मनुष्योंका निवास ग्यारहवे अध्याय-विश्वरूपदर्शनयोगका पाठ किया है। वहाँ हाथमें शाई-नामक धनुष धारण करनेवाले करते थे। उस अध्यायके प्रभावसे उन्हें ब्रह्मज्ञानकी प्राप्ति जगदीश्वर भगवान् विष्णु विराजमान है। वे परब्रह्मके हो गयी थी। परमानन्द-सन्दोहसे पूर्ण उत्तम ज्ञानमयी साकार स्वरूप हैं। संसारके नेत्रोंको जीवन प्रदान समाधिके द्वारा इन्द्रियों के अन्तर्मुख हो जानेके कारण वे करनेवाले हैं। उनका गौरवपूर्ण श्रीविग्रह भगवती निश्चल स्थितिको प्राप्त हो गये थे और सदा जीवन्मुक्त लक्ष्मीके नेत्र-कमलोद्वारा पूजित होता है। भगवानकी योगीकी स्थितिमें रहते थे। एक समय जब बृहस्पति सिंह वह झाँको वामन अवतारकी है। मेघके समान उनका राशिपर स्थित थे, महायोगी सुनन्दने गोदावरीतीर्थकी श्यामवर्ण तथा कोमल आकृति है। वक्षःस्थलपर यात्रा आरम्भ की। वे क्रमशः विरजतीर्थ, तारा तीर्थ, श्रीवत्सका चिह्न शोभा पाता है। वे कमल और कपिलासंगम, अष्टतीर्थ, कपिलाद्वार, नृसिंहवन, वनमालासे विभूषित हैं। अनेक प्रकारके आभूषणोंसे अम्बिकापुरी तथा करस्थानपुर आदि क्षेत्रोंमें स्नान और सुशोभित हो भगवान् वामन रत्नयुक्त समुद्रके सदृश जान दर्शन करते हुए विवाहमण्डप नामक नगरमें आये। वहाँ पड़ते हैं। पीताम्बरसे उनके श्याम विग्रहकी कान्ति ऐसी उन्होंने प्रत्येक घरमें जाकर अपने ठहरनेके लिये स्थान प्रतीत होती है, मानो चमकती हुई बिजलीसे घिरा हुआ माँगा, परन्तु कहीं भी उन्हें स्थान नहीं मिला । अन्तमें स्निग्ध मेघ शोभा पा रहा हो। उन भगवान् वामनका गांवके मुखियाने उन्हें एक बहुत बड़ी धर्मशाला दिखा दर्शन करके जीव जन्म एवं संसारके बन्धनसे मुक्त हो दी। ब्राह्मणने साथियोसहित उसके भीतर जाकर रातमें जाता है। उस नगरमें मेखला नामक महान् तीर्थ है, निवास किया। सबेरा होनेपर उन्होंने अपनेको तो जिसमें खान करके मनुष्य शाश्वत वैकुण्ठधामको प्राप्त धर्मशालाके बाहर पाया, किन्तु उनके और साथी नहीं होता है। वहाँ जगत्के स्वामी करुणासागर भगवान् दिखायी दिये। वे उन्हें खोजनेके लिये चले, इतनेमें ही
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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