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________________ ८२६ अर्जयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् • बोला- 'यदि तू मेरा पुत्र है तो मुझे शीघ्र ही बन्धनसे मुक्त कर मैं पूर्वजन्मके गाड़े हुए धनके ही लिये सर्पयोनिमें उत्पन्न हुआ हूँ।' पुत्रने पूछा- पिताजी! आपकी मुक्ति कैसे होगी ? इसका उपाय मुझे बताइये क्योंकि मैं इस रातमें सब लोगोंको छोड़कर आपके पास आया हूँ। पिताने कहा- बेटा ! गीताके अमृतमय सप्तम अध्यायको छोड़कर मुझे मुक्त करनेमें तीर्थ, दान, तप और यज्ञ भी सर्वथा समर्थ नहीं हैं। केवल गीताका सातवाँ अध्याय ही प्राणियोंके जरा मृत्यु आदि दुःखको दूर करनेवाला है। पुत्र ! मेरे श्राद्धके दिन सप्तम अध्यायका पाठ करनेवाले ब्राह्मणको श्रद्धापूर्वक भोजन कराओ। इससे निस्सन्देह मेरी मुक्ति हो जायगी। वत्स! अपनी शक्तिके अनुसार पूर्ण श्रद्धाके साथ वेद-विद्यामें प्रवीण अन्य ब्राह्मणोंको भी भोजन कराना । सर्पयोनिमें पड़े हुए पिताके ये वचन सुनकर सभी पुत्रोंने उसकी आज्ञाके अनुसार तथा उससे भी अधिक किया। तब शङ्कुकर्णने अपने सर्पशरीरको त्यागकर दिव्य देह धारण किया और सारा धन पुत्रोंके अधीन कर N [ संक्षिप्त पद्मपुराण ------- दिया। पिताने करोड़ोंकी संख्यामें जो धन बाँटकर दिया था, उससे वे सदाचारी पुत्र बहुत प्रसन्न हुए। उनकी बुद्धि धर्ममें लगी हुई थी इसलिये उन्होंने बावली, कुआँ, पोखरा, यज्ञ तथा देवमन्दिरके लिये उस धनका उपयोग किया और अनशाला भी बनवायी। तत्पश्चात् सातवें अध्यायका सदा जप करते हुए उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया। पार्वती ! यह तुम्हें सातवें अध्यायका माहात्म्य बताया गया है; जिसके श्रवणमात्रसे मानव सब पातकोंसे मुक्त हो जाता है। भगवान् शिव कहते हैं-देवि ! अब आठवें अध्यायका माहात्म्य सुनो! उसके सुननेसे तुम्हें बड़ी प्रसन्नता होगी। [ लक्ष्मीजीके पूछनेपर भगवान् विष्णुने उन्हें इस प्रकार अष्टम अध्यायका माहात्म्य बतलाया था ।] दक्षिणमें आमर्दकपुर नामक एक प्रसिद्ध नगर है। वहाँ भावशर्मा नामक एक ब्राह्मण रहता था, जिसने वेश्याको पत्नी बनाकर रखा था। वह मांस खाता, मदिरा पीता, साधुओंका धन चुराता परायी स्त्रीसे व्यभिचार करता और शिकार खेलनेमें दिलचस्पी रखता था । वह बड़े भयानक स्वभावका था और मनमें बड़े-बड़े हौसले रखता था। एक दिन मदिरा पीनेवालोंका समाज जुटा था। उसमें भावशर्माने भर पेट ताड़ी पी – खूब गलेतक उसे चढ़ाया; अतः अजीर्णसे अत्यन्त पीड़ित होकर वह पापात्मा कालवश मर गया और बहुत बड़ा ताड़का वृक्ष हुआ। उसकी घनी और ठण्डी छायाका आश्रय लेकर ब्रह्मराक्षसभावको प्राप्त हुए कोई पति पत्नी वहाँ रहा करते थे। - उनके पूर्वजन्मकी घटना इस प्रकार है। एक कुशीबल नामक ब्राह्मण था, जो वेद-वेदाङ्गके तत्त्वोंका ज्ञाता, सम्पूर्ण शास्त्रोंके अर्थका विशेषज्ञ और सदाचारी था। उसकी स्त्रीका नाम कुमति था। वह बड़े खोटे विचारकी थी। वह ब्राह्मण विद्वान् होनेपर भी अत्यन्त लोभवश अपनी स्त्रीके साथ प्रतिदिन भैंस, कालपुरुष और घोड़े आदि बड़े दानोंको ग्रहण किया करता था; परन्तु दूसरे ब्राह्मणोंको दानमें मिली हुई कौड़ी भी नहीं देता था। वे ही दोनों पति-पत्नी कालवश
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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