SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 793
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तरखण्ड ] · वेत्रवती और साभ्रमती (साबरमती) नदीका माहाल्य • आप वर देनेमें समर्थ हैं। आपके मस्तकपर जो ये परम पवित्र पापहारिणी गङ्गा स्थित हैं, इन्हें विशेष कृपा करके मुझे दीजिये। आपको नमस्कार है। पार्वती ! उस समय मैंने महर्षि कश्यपसे कहा'द्विजश्रेष्ठ ! लो अपना वर' यों कहकर मैंने अपने मस्तकसे एक जटा उखाड़कर उसीके साथ उन्हें गङ्गाको दिया। श्रीगङ्गाजीको लेकर द्विजश्रेष्ठ कश्यप बड़ी प्रसन्नताके साथ अपने स्थानको चले गये। गिरिजे पूर्वकालमें विष्णुलोककी इच्छा रखनेवाले राजा भगीरथने मुझसे गङ्गाजीके लिये याचना की थी, उस समय उन्हें भी मैंने गङ्गाको समर्पित किया था। तत्पश्चात् पुनः ऋषियोंके कहनेसे कश्यपजीको गङ्गा प्रदान की। यह काश्यपी गङ्गा समस्त रोग और दोषोंका अपहरण करनेवाली है। सुन्दरि ! भिन्न-भिन्न युगों में यह गङ्गा संसारमें जिन-जिन नामोंसे विख्यात होती हैं, उनका यथार्थ वर्णन करता हूँ सुनो। सत्ययुगमें कृतवती, त्रेता में गिरिकर्णिका, द्वापरमें चन्दना और कलियुगमें इनका नाम साभ्रमती ( साबरमती) होता है। जो मनुष्य प्रतिदिन यहाँ विशेषरूपसे स्नान करनेके लिये आते हैं, ७९३ *********** वे सब पापोंसे मुक्त हो भगवान् विष्णुके सनातन धामको जाते हैं। प्लक्षावतरण तीर्थमें, सरस्वती नदीमें, केदार क्षेत्रमें तथा कुरुक्षेत्र में स्नान करनेसे जो फल होता है, वह फल साभ्रमती नदीमें नित्य स्नान करनेसे प्रतिदिन प्राप्त होता है। माघ मास आनेपर प्रयाग तीर्थमें प्रातः स्नान करनेसे जो फल होता है, कार्तिककी पूर्णिमाको कृत्तिकाका योग आनेपर श्रीशैलमें भगवान् माधवके समक्ष जिस फलकी प्राप्ति होती है, वह साभ्रमती नदीमें डुबकी लगानेमात्रसे प्राप्त हो जाता है। देवि ! यह नदी सबसे श्रेष्ठ और सम्पूर्ण जगत् में पावन है। इतना ही नहीं, यह पवित्र और पापनाशिनी होनेके कारण परम धन्य है । देवेश्वरि पितृतीर्थ सब तीर्थोसहित प्रयाग, माधवसहित भगवान् वटेश्वर, दशाश्वमेध तीर्थ तथा गङ्गाद्वार – ये सब मेरी आज्ञासे साभ्रमती नदीमें निवास करते हैं। नन्दा, ललिता, सप्तधारक, मित्रपद, भगवान् शङ्करका निवासभूत केदारतीर्थ, सर्वतीर्थमय गङ्गासागर, शतद्रु (सतलज) के जलसे भरे हुए कुण्डमें ब्रह्मसर तीर्थ, तथा नैमिषतीर्थ भी मेरी आज्ञासे सदा साभ्रमती नदीके जलमें निवास करते हैं। श्वेता, बल्कलिनी, हिरण्यमयी, हस्तिमती तथा सागरगामिनी नदी बानी – ये सब पितरोंको अत्यन्त प्रिय तथा श्राद्धका कोटिगुना फल देनेवाली हैं। वहाँ पुत्रोंको पितरोंके हितके लिये पिण्ड दान करना चाहिये। जो मनुष्य वहाँ स्नान और दान करते हैं, वे इस लोकमें सुख भोगकर अन्तमें भगवान् विष्णुके सनातन धामको जाते हैं। नीलकण्ठ तीर्थ, नन्दहद तीर्थ, रुद्रहृद तीर्थ, पुण्यमय रुद्रमहालय तीर्थ परम पुण्यमयी मन्दाकिनी तथा महानदी अच्छोदा – ये सब तीर्थ और नदियाँ अव्यक्तरूपसे साभ्रमती नदीमें बहती रहती हैं। धूम्रतीर्थ, मित्रपद, बैजनाथ, दृषद्वर, क्षिप्रा नदी महाकाल तीर्थ, कालञ्जर पर्वत, गङ्गोद्भूत तीर्थ, हरोद्भेद तीर्थ, नर्मदा नदी तथा ओङ्कार तीर्थ-ये गङ्गामें पिण्डदान करनेके समान फल देनेवाले हैं, ऐसा मनीषी पुरुषोंका कथन है। उक्त सभी तीर्थ ब्रह्मतीर्थ कहलाते हैं। ब्रह्मा आदि देवताओंने इन सभी तीर्थोको साभ्रमती नदीके उत्तर तटपर गुप्तरूपसे
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy