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________________ . अर्चवस्व हुचीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [ संक्षिप्त पदापुराण - महादेवजी कहते है-यह मोक्षदायक शास्त्र भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं-देवदेव भगवान अनधिकारी पुरुषोंके सामने प्रकाशित करनेयोग्य नहीं है। शङ्करने पुत्रको मङ्गल-कामनासे यह व्रत उसे बताया जो मनुष्य इसका श्रवण करता है, वह मोक्षको प्राप्त होता था। पिताके वचन सुनकर कार्तिकेय आनन्दमग्न हो है। कार्तिकेय ! इस व्रतको यत्नपूर्वक गुप्त रखना गये। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस कार्तिकमाहात्म्यका पाठ चाहिये। जो त्यागी मनुष्य हैं, वे भी यदि इस व्रतका करता, सुनता और सुनकर हृदयमें धारण करता है, वह अनुष्ठान करें तो उनके पुण्यको बतलानेमें मैं असमर्थ सब पापोंसे मुक्त हो भगवान् विष्णुके लोकमें जाता है। हूँ। इस प्रकार कार्तिक मासका जो कुछ भी फल है, वह इस माहात्म्यका श्रवण करनेमात्रसे ही धन, धान्य, यश, सब मैंने बतला दिया। पुत्र, आयु और आरोग्यकी प्राप्ति हो जाती है। भक्तिका स्वरूप, शालग्रामशिलाकी महिमा तथा वैष्णवपुरुषोंका माहात्म्य श्रीपार्वतीजीने पूछा-प्रभो! विश्वेश्वर ! श्रेष्ठ प्रधान-प्रधान मुनीश्वर उन्हें कल्याण प्रदान करते हैं। जो भक्तिका क्या स्वरूप है, जिसके जाननेमात्रसे मनुष्योंको भगवान् गोविन्दमें भक्ति रखते हैं, उनके लिये भूतसुख प्राप्त होता है? पिशाचोंसहित समस्त ग्रह शुभ हो जाते हैं। ब्रह्मा आदि महादेवजी बोले-देवि ! भक्ति तीन प्रकारको देवता उनपर प्रसन्न होते हैं तथा उनके घरों में लक्ष्मी सदा बतायी गयी है-सात्त्विकी, राजसी और तामसी । इनमें स्थिर रहती है। भगवान् गोविन्दमें भक्ति रखनेवाले सात्विकी उत्तम, राजसी मध्यम और तामसी कनिष्ठ है। मानवोंके शरीरमें सदा गङ्गा, गया, नैमिषारण्य, काशी, मोक्षरूप फलको इच्छा रखनेवाले पुरुषोंको श्रीहरिकी प्रयाग और कुरुक्षेत्र आदि तीर्थ निवास करते हैं।* उत्तम भक्ति करनी चाहिये। अहङ्कारको लेकर या इस प्रकार विद्वान् पुरुष भगवती लक्ष्मीसहित दूसरोंको दिखानेके लिये अथवा ईर्ष्यावश या दूसरोंका भगवान् विष्णुको आराधना करे। जो ऐसा करता है, वह संहार करनेकी इच्छासे जो किसी देवताकी भक्ति की ब्राह्मण सदा कृतकृत्य होता है-इसमें तनिक भी सन्देह जाती है, वह तामसी बतायी गयी है। जो विषयोंकी नहीं है। पार्वती ! क्षत्रिय वैश्य अथवा शूद्र ही क्यों न इच्छा रखकर अथवा यश और ऐश्वर्यकी प्राप्तिके लिये हो-जो भगवान् विष्णुकी विशेषरूपसे भक्ति करता है, भगवान्की पूजा करता है, उसकी भक्ति राजसी मानी वह निस्सन्देह मुक्त हो जाता है। गयी है। ज्ञान-परायण ब्राह्मणोंको कर्म-बन्धनका नाश पार्वतीजीने पूछा-सुरेश्वर ! इस पृथ्वीपर करनेके लिये श्रीविष्णुके प्रति आत्मसमर्पणकी बुद्धि शालग्रामशिलाकी विशुद्ध मूर्तियाँ बहुत-सी हैं, उनमें से करनी चाहिये। यही सात्विकी भक्ति है। अतः देवि ! कितनी मूर्तियोंको पूजनमें ग्रहण करना चाहिये। सदा सब प्रकारसे श्रीहरिका सेवन करना चाहिये। महादेवजी बोले-देवि ! जहाँ शालग्रामतामसभावसे तामस, राजससे राजस और सात्त्विकसे शिलाकी कल्याणमयी मूर्ति सदा विराजमान रहती है, सात्त्विक गति प्राप्त होती है। भगवान् गोविन्दमें भक्ति उस घरको वेदोंमें सब तीर्थोसे श्रेष्ठ बताया गया है। रखनेवाले पुरुषोंको समस्त देवता प्रसन्नतापूर्वक शान्ति ब्राह्मणोको पाँच, क्षत्रियोंको चार, वैश्योंको तीन और देते हैं, ब्रह्मा आदि देवेश्वर उनका मङ्गल करते हैं और शूद्रोंको एक ही शालग्राममूर्तिका यलपूर्वक पूजन करना * गङ्गागयानैमिषपुष्कराणि काशी प्रयागः कुरुजाङ्गलानि । तिष्ठन्ति देहे कृतभक्तिपूर्व गोविन्दभक्तिं वहता नराणाम् ।। (१२६ । १७) + क्षत्रियो वाऽथ वैश्यो वा शूद्रो वा सुरसतमे। भक्तिं कुर्वन् विशेषेण मुक्तिं याति संशयः ॥ (१२६ । १९)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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