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________________ ७८२ • अर्जयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि पर पदम् .. [ संक्षिप्त पयपुराण ................................................................................................... प्रबोधिनी एकादशी और उसके जागरणका महत्त्व तथा भीष्मपञ्चक-व्रतकी विधि एवं महिमा महादेवजी कहते हैं-सुरश्रेष्ठ कार्तिकेय ! अब एकादशीको जागरण करता है, वह परमात्मामें लीन हो प्रबोधिनी एकादशीका माहात्म्य सुनो। यह पापका नाशक, जाता है। जो कार्तिकमें पुरुषसूक्तके द्वारा प्रतिदिन पुण्यकी वृद्धि करनेवाला तथा तत्त्वचिन्तनपरायण श्रीहरिका पूजन करता है, उसके द्वारा करोड़ों वर्षातक पुरुषोंको मोक्ष देनेवाला है। समुद्रसे लेकर सरोवरोतक भगवानको पूजा सम्पन्न हो जाती है। जो मनुष्य पाञ्चरात्रमें जितने तीर्थ हैं, वे भी तभीतक गरजते हैं जबतक कि बतायी हुई यथार्थ विधिके अनुसार कार्तिकमें भगवान्का कार्तिकमे श्रीहरिकी प्रबोधिनी तिथि नहीं आती। पूजन करता है, वह मोक्षका भागी होता है। जो कार्तिकमें प्रबोधिनीको एक ही उपवाससे सहस्र अश्वमेध और सौ 'ॐ नमो नारायणाय' इस मन्त्रके द्वारा श्रीहरिकी अर्चना राजसूय यज्ञोंका फल मिल जाता है। इस चराचर करता है, वह नरकके दुःखोंसे छुटकारा पाकर अनामय त्रिलोकीमें जो वस्तु अत्यन्त दुर्लभ मानी गयी है, उसे भी पदको प्राप्त होता है। जो कार्तिकमें श्रीविष्णुसहस्रनाम माँगनेपर हरिबोधिनी एकादशी प्रदान करती है। यदि तथा गजेन्द्र-मोक्षका पाठ करता है, उसका पुनर्जन्म नहीं हरिबोधिनी एकादशीको उपवास किया जाय तो वह होता। उसके कुलमें जो सैकड़ों, हजारों पुरुष उत्पन्न हो अनायास ही ऐश्वर्य, सन्तान, ज्ञान, राज्य और सुख- चुके हैं, वे सभी श्रीविष्णुधामको प्राप्त होते हैं। अतः सम्पत्ति प्रदान करती है। मनुष्यके किये हुए मेरुपर्वतके एकादशीको जागरण अवश्य करना चाहिये। जो समान बड़े-बड़े पापोंको भी हरिबोधिनी एकादशी एक ही कार्तिकमें रात्रिके पिछले पहरमें भगवान्के सामने उपवाससे भस्म कर डालती है । जो प्रबोधिनी एकादशीको स्तोत्रगान करता है, वह अपने पितरोंके साथ श्वेतद्वीपमें स्वभावसे ही विधिपूर्वक उपवास करता है, वह शास्त्रोक्त निवास करता है। जो मनुष्य कार्तिक शुक्लपक्षमें फलका भागी होता है। प्रबोधिनी एकादशीको रात्रिमें एकादशीका व्रत पूर्ण करके प्रातःकाल सुन्दर कलश दान जागरण करनेसे पहलेके हजारों जन्योंकी की हुई पापराशि करता है, वह श्रीहरिके परमधामको प्राप्त होता है। रूईके ढेरकी भाँति भस्म हो जाती है। व्रतधारियोंमें श्रेष्ठ कार्तिकेय ! अब मैं तुम्हें महान् रात्रि जागरण करते समय भगवत्सम्बन्धी गीत, पुण्यदायक व्रत बताता हूँ। यह व्रत कार्तिकके अन्तिम वाद्य, नृत्य और पुराणोंके पाठकी भी व्यवस्था करनी पाँच दिनोंमें किया जाता है। इसे भीष्मजीने भगवान् चाहिये। धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, गन्ध, चन्दन, फल और वासुदेवसे प्राप्त किया था, इसलिये यह व्रत भीष्मपञ्चक अर्घ्य आदिसे भगवान्की पूजा करनी चाहिये। मनमें नामसे प्रसिद्ध है। भगवान् केशवके सिवा दूसरा कौन श्रद्धा रखकर दान देना और इन्द्रियोंको संयममें रखना ऐसा है, जो इस व्रतके गुणोंका यथावत् वर्णन कर सके। चाहिये। सत्यभाषण, निद्राका अभाव, प्रसन्नता, वसिष्ठ, भृगु और गर्ग आदि मुनीश्वरोंने सत्ययुगके शुभकर्ममें प्रवृत्ति, मनमें आश्चर्य और उत्साह, आलस्य आदिमें कार्तिकके शुक्रपक्षमें इस पुरातन धर्मका आदिका त्याग, भगवान्की परिक्रमा तथा नमस्कार-इन अनुष्ठान किया था। राजा अम्बरीषने भी त्रेता आदि बातोका यत्नपूर्वक पालन करना चाहिये। महाभाग ! युगोंमें इस व्रतका पालन किया था। ब्राह्मणोंने प्रत्येक पहरमें उत्साह और उमङ्गके साथ भक्तिपूर्वक ब्रह्मचर्यपालन, जप तथा हवन कर्म आदिके द्वारा और भगवान्की आरती उतारनी चाहिये । जो पुरुष भगवान्के क्षत्रियों एवं वैश्योंने सत्य-शौच आदिके पालनपूर्वक इस समीप एकाग्रचित्त होकर उपर्युक्त गुणोंसे युक्त जागरण व्रतका अनुष्ठान किया है। सत्यहीन मूढ़ मनुष्योंके लिये करता है, वह पुनः इस पृथ्वीपर जन्म नहीं लेता। जो इस व्रतका अनुष्ठान असम्भव है। जो इस व्रतको पूर्ण धनकी कृपणता छोड़कर इस प्रकार भक्तिभावसे कर लेता है, उसने मानो सब कुछ कर लिया।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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