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________________ १ . अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पयपुराण शोभा पा रहे हैं। अलसीके फूलकी भांति श्यामसुन्दर बुलाया और इस प्रकार कहना आरम्भ किया। शरीर और कौस्तुभमणिसे जगमगाते हुए वक्षःस्थलकी राजा बोले-जिसके साथ लाग-डाँट होनेके अपूर्व शोभा हो रही है। अपने प्रभुको प्रत्यक्ष देखकर कारण मैंने यह यज्ञ-दान आदि कर्मका अनुष्ठान किया द्विजश्रेष्ठ विष्णुदास सात्विक भावोंके वशीभूत हो गये। है, वह ब्राह्मण आज भगवान् विष्णुका रूप धारण करके वे स्तुति और नमस्कार करनेमें भी समर्थ न हो सके। मुझसे पहले ही वैकुण्ठधाममें जा रहा है। मैंने इस उस समय वहाँ इन्द्र आदि देवता भी आ पहुँचे । गन्धर्व वैष्णवयागमें भलीभाँति दीक्षित होकर अग्निमें हवन और अप्सराएँ गाने और नाचने लगीं। वह स्थान सैकड़ों किया और दान आदिके द्वारा ब्राह्मणोंका मनोरथ पूर्ण विमानोंसे भर गया और देवर्षियोंके समुदायसे सुशोभित किया; तथापि अभीतक भगवान् मुझपर प्रसन्न नहीं हुए होने लगा। चारों ओर गीत और वाद्योंकी ध्वनि छा और इस ब्राह्मणको केवल भक्तिके ही कारण श्रीहरिने गयी। तब भगवान् विष्णुने सात्त्विक व्रतका पालन प्रत्यक्ष दर्शन दिया है। अतः जान पड़ता है, भगवान् करनेवाले अपने भक्त विष्णुदासको छातीसे लगा लिया विष्णु केवल दान और यज्ञोंसे प्रसन्न नहीं होते। उन और उन्हें अपने-ही-जैसा रूप देकर वे वैकुण्ठधामको प्रभुका दर्शन करानेमें भक्ति ही प्रधान कारण है। ले चले। उस समय यज्ञमें दीक्षित हुए राजा चोलने दोनों पार्षद कहते हैं-यों कहकर राजाने अपने देखा, विष्णुदास एक सुन्दर विमानपर बैठकर भगवान् भानजेको राज्यसिंहासनपर अभिषिक्त कर दिया। वे विष्णुके समीप जा रहे हैं। विष्णुदासको वैकुण्ठधाममें बचपनसे ही यज्ञकी दीक्षा लेकर उसीमें संलग्न रहते थे, जाते देख राजाने तुरंत ही अपने गुरु महर्षि मुद्गलको इसलिये उन्हें कोई पुत्र नहीं हुआ। यही कारण है कि उस देशमें अबतक भानजे ही सदा राज्यके उत्तराधिकारी होते है। वे सब-के-सब राजा चोलके द्वारा स्थापित आचारका ही पालन करते हैं। भानजेको राज्य देनेके पश्चात् राजा यज्ञशालामें गये और यज्ञकुण्डके सामने खड़े होकर श्रीविष्णुको सम्बोधित करते हुए तीन बार उच्चस्वरसे निम्नाङ्कित वचन बोले-'भगवान् विष्णु ! आप मुझे मन, वाणी, शरीर और क्रियाद्वारा स्थिर भक्ति प्रदान कीजिये।' यो कहकर वे सबके देखते-देखते अग्निमें कूद पड़े। उस समय मुद्गल मुनिने क्रोधमें आकर अपनी शिखा उखाड़ डाली। तभीसे आजतक उस गोत्रमें उत्पन्न होनेवाले समस्त मुद्गल ब्राह्मण बिना शिखाके ही रहते हैं। राजा ज्यों ही अग्निकुण्डमें कूदे, उसी समय भक्तवत्सल भगवान् विष्णु प्रकट हो गये और उन्होंने राजाको छातीसे लगाकर एक श्रेष्ठ विमानपर बिठाया; फिर अपने ही समान रूप देकर उन देवेश्वरने देवताओसहित वैकुण्ठ-धामको प्रस्थान किया। उक्त १-प्रेमको प्रगाढ़ावस्थामें होनेवाले आठ प्रकारके अङ्ग-विकारोको, जो सत्त्वगुणको प्रेरणासे प्रकट होते हैं, सात्विक भाव कहते है। उनके नाम ये हैं-स्तम्भ, खेद, रोमाछ, स्वरभन्न कम्प, विवर्णता, आँसू और प्रलय ।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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