SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 765
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तरखण्ड ] . कार्तिक-माहात्म्यके प्रसङ्ग में राजा घोल और विष्णुदासकी कथा . ७६५ ............................................. कार्तिक-माहात्म्यके प्रसङ्गमें राजा चोल और विष्णुदासकी कथा नारदजी कहते है-इस प्रकार विष्णुपार्षदोंके पूजा को । राजा चोलने जो पहले रत्नोंसे भगवानकी पूजा वचन सुनकर धर्मदत्तको बड़ा आश्चर्य हुआ, वे उन्हें की थी, वह सब तुलसी-पूजासे ढक गयी। यह देख साष्टाङ्ग प्रणाम करके बोले-'प्रायः सभी लोग भक्तोका राजा कुपित होकर बोले-"विष्णुदास ! मैंने मणियों कष्ट दूर करनेवाले श्रीविष्णुकी यज्ञ, दान, व्रत, Pाम तीर्थसेवन और तपस्याओंके द्वारा विधिपूर्वक आराधना करते हैं; उन समस्त साधनोंमें कौन-सा ऐसा साधन है, जो श्रीविष्णुको प्रीतिकारक तथा उनके सामीप्यकी प्राप्ति करानेवाला है? किस साधनका अनुष्ठान करनेसे उपर्युक्त सभी साधनोंका अनुष्ठान स्वतः हो जाता है? दोनों पार्षदोंने कहा-ब्रह्मन् ! तुमने बहुत उत्तम बात पूछी है; अब एकाग्रचित्त होकर सुनो, हम इतिहाससहित प्राचीन वृत्तान्तका वर्णन करते हैं। पहले काञ्चीपुरीमें चोल नामक एक चक्रवर्ती राजा हो गये हैं; उनके अधीन जितने देश थे वे भी चोल नामसे ही विख्यात हुए। राजा चोल जब इस भूमण्डलका शासन करते थे, उस समय कोई भी मनुष्य दरिद्र, दुःखी, पापमें मन लगानेवाला अथवा रोगी नहीं था। उन्होंने इतने यज्ञ किये थे, जिनकी कोई गणना नहीं हो सकती। उनके यज्ञोंके सुवर्णमय एवं शोभाशाली यूपोंसे भरे हुए ताम्रपर्णी नदीके दोनों किनारे चैत्ररथ वनके समान तथा सुवर्णसे भगवान्को पूजा की थी, वह कितनी शोभा सुशोभित होते थे। एक समयकी बात है, राजा चोल पा रही थी ! किन्तु तुमने तुलसीदल चढ़ाकर सब ढक 'अनन्तशयन' नामक तीर्थमें गये, जहाँ जगदीश्वर दी। बताओ, ऐसा क्यों किया? मुझे तो ऐसा जान पड़ता श्रीविष्णु योगनिद्राका आश्रय ले सो रहे थे। वहाँ है, तुम बड़े मूर्ख हो; भगवान् विष्णुकी भक्तिको लक्ष्मीरमण भगवान् श्रीविष्णुके दिव्य विग्रहको राजाने बिलकुल नहीं जानते। तभी तो तुम अत्यन्त सुन्दर विधिपूर्वक पूजा की। मणि, मोती तथा सुवर्णके बने हुए सजी-सजायी पूजाको पत्तोंसे ढके जा रहे हो ! तुम्हारे इस सुन्दर फूलोंसे पूजन करके उन्होंने भगवान्को साष्टाङ्ग वर्तावपर मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा है।' प्रणाम किया। प्रणाम करके वे ज्यों ही बैठे, उसी समय विष्णुदास बोले-राजन् ! आपको भक्तिका उनकी दृष्टि भगवान्के पास आते हुए एक ब्राह्मणपर कुछ भी पता नहीं है, केवल राजलक्ष्मीके कारण आप पड़ी, जो उन्हींकी काञ्चीनगरीके निवासी थे। उनका नाम घमंड कर रहे हैं। बताइये तो, आजसे पहले आपने विष्णुदास था। वे भगवान्की पूजाके लिये अपने हाथमें कितने वैष्णव व्रतोंका पालन किया है? तुलसीदल और जल लिये हुए थे। निकट आनेपर उन राजाने कहा-ब्राहाण ! यदि तुम विष्णुभक्तिसे ब्रह्मर्षिने विष्णुसूक्तका पाठ करते हुए देवदेव भगवान्को अत्यन्त गर्वमें आकर ऐसी बात करते हो तो बताओ, स्नान कराया और तुलसीको मञ्जरी तथा पत्तोंसे विधिवत् तुममें कितनी भक्ति है ? तुम तो दरिद्र हो, निर्धन हो।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy