SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७६ . अर्चयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पद्मपुराण ........................ ...................................aamanner....... यह रूप और विद्या प्रदान करनेवाला 'सारस्वत' नामक व्रतके अन्तमें फूलोंका हार, घी और घृतमिश्रित खीर व्रत है। प्रतिदिन गोबरका मण्डल बनाकर उसमें ब्राह्मणको दान करता है, वह शिवलोकमें जाता है। अक्षतोंद्वारा कमल बनाये। उसके ऊपर भगवान् श्रीशिव इसका नाम 'शीलवत' है। जो [नियत कालतक] या श्रीविष्णुकी प्रतिमा रखकर उसे घीसे स्नान कराये; प्रतिदिन सन्ध्याके समय दीप-दान करता है तथा घी और फिर विधिवत् पूजन करे। इस प्रकार जब एक वर्ष बीत तेलका सेवन नहीं करता, फिर व्रत समाप्त होनेपर जाय, तब साम-गान करनेवाले ब्राह्मणको शुद्ध सोनेका ब्राह्मणको दीपक, चक्र, शूल, सोना और धोती-चद्दर बना हुआ आठ अंगुलका कमल और तिलकी धेनु दान दान करता है, वह इस संसारमें तेजस्वी होता है तथा करे। ऐसा करनेवाला पुरुष शिवलोकमें प्रतिष्ठित होता अन्तमें रुद्रलोकको जाता है। यह 'दीप्तिव्रत' है। जो है। यह 'सामव्रत' कहा गया है। कार्तिकसे आरम्भ करके प्रत्येक मासको तृतीयाको रातके नवमी तिथिको एकभुक्त रहकर-एक ही अन्नका समय गोमूत्रमें पकायी हुई जौकी लप्सी खाकर रहता है भोजन करके कुमारी कन्याओंको भक्तिपूर्वक भोजन और वर्ष समाप्त होनेपर गोदान करता है, वह एक कराये तथा गौ, सुवर्ण, सिला हुआ अंगा, धोती, चद्दर कल्पतक गौरीलोकमें निवास करता है तथा उसके बाद तथा सोनेका सिंहासन ब्राह्मणको दान करे; इससे वह इस लोकमें राजा होता है। इसका नाम 'रुद्रव्रत' है। यह शिवलोकको जाता है। अरबों जन्मतक सुरूपवान् होता सदा कल्याण करनेवाला है। जो चार महीनोंतक चन्दन है। शत्रु उसे कभी परास्त नहीं कर पाते। यह मनुष्योंको लगाना छोड़ देता है तथा अन्तमें सीपी, चन्दन, अक्षत सुख देनेवाला 'वीरव्रत' नामका व्रत है। चैतसे आरम्भ और दो श्वेत वस्त्र-धोती और चद्दर ब्राह्मणको दान कर चार महीनोंतक प्रतिदिन लोगोंको बिना माँगे जल करता है, वह वरुणलोकमें जाता है। यह 'दृढव्रत' पिलाये और इस व्रतको समाप्ति होनेपर अन्न-वस्त्रसहित कहलाता है। जलसे भरा हुआ माट, तिलसे पूर्ण पात्र तथा सुवर्ण दान सोनेका ब्रह्माण्ड बनाकर उसे तिलकी ढेरीमें रखे करे। ऐसा करनेवाला पुरुष ब्रह्मलोकमें सम्मानित होता तथा 'मैं अहङ्काररूपी तिलका दान करनेवाला हूँ' ऐसी है। यह उत्तम 'आनन्दव्रत' है। जो पुरुष मांसका भावना करके घीसे अग्निको तथा दक्षिणासे ब्राह्मणको बिलकुल परित्याग करके व्रतका आचरण करे और तृप्त करे। फिर माला, वस्त्र तथा आभूषणोंद्वारा उसकी पूर्तिके निमित्त गौ तथा सोनेका मृग दान करे, वह ब्राह्मण-दम्पतीका पूजन करके विश्वात्माकी तृप्तिके अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त करता है। इसका नाम उद्देश्यसे किसी शुभ दिनको अपनी शक्तिके अनुसार 'अहिंसावत' है। एक कल्पतक इसका फल भोगकर तीन तोलेसे अधिक सोना तथा तिलसहित ब्रह्माण्ड अन्तमें मनुष्य राजा होता है। मायके महीनेमें सूर्योदयके ब्राह्मणको दान करे। ऐसा करनेवाला पुरुष पुनर्जन्मसे पहले स्रान करके द्विज-दम्पतीका पूजन करे तथा उन्हें रहित ब्रह्मपदको प्राप्त होता है। इसका नाम 'ब्रह्मव्रत' भोजन कराकर यथाशक्ति वस्त्र और आभूषण दान दे। है। यह मनुष्योंको मोक्ष देनेवाला है। जो तीन दिन यह 'सूर्यव्रत' है। इसका अनुष्ठान करनेवाला पुरुष एक केवल दूध पीकर रहता है और अपनी शक्तिके अनुसार कल्पतक सूर्यलोकमें निवास करता है। आषाढ़ आदि एक तोलेसे अधिक सोनेका कल्पवृक्ष बनवाकर उसे चार महीनोंमें प्रतिदिन प्रातःस्नान करे और फिर एक सेर चावलके साथ ब्राह्मणको दान करता है, वह भी कार्तिककी पूर्णिमाके दिन ब्राह्मणोंको भोजन कराकर ब्रह्मपदको प्राप्त होता है । यह 'कल्पवृक्षवत' है। जो एक गोदान दे तो वह मनुष्य भगवान् श्रीविष्णुके धामको प्राप्त महीनेतक उपवास करके ब्राह्मणको सुन्दर गौ दान करता होता है। यह 'विष्णुव्रत' है। जो एक अयनसे दूसरे है, वह भगवान् श्रीविष्णुके धामको प्राप्त होता है। इसका अयनतक पुष्प और घृतका सेवन छोड़ देता है और नाम 'भीमव्रत' है। जो बीस तोलेसे अधिक सोनेकी
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy