SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 759
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तरखण्ड ] १० । • कार्तिक-व्रतके नियम और उद्यापनकी विधि • .. . . . . . . . . . . . . . देवस्त्वं निर्मिता पूर्वमर्थिताऽसि मुनीश्वरैः। तुलसी-पूजनके पश्चात् व्रत करनेवाला भक्तिमान् नमो नमस्ते तुलसि पापं हर हरिप्रिये ॥ पुरुष चित्तको एकाग्न करके भगवान् विष्णुकी पौराणिक (९५ । ३०) कथा सुने तथा कथा-वाचक विद्वान् ब्राह्मण अथवा 'हरिप्रिया तुलसीदेवी ! पूर्वकालमें देवताओंने तुम्हें मुनिकी पूजा करे। जो मनुष्य भक्तियुक्त होकर पूर्वोक्त उत्पन्न किया और मुनीश्वरोंने तुम्हारी पूजा की। तुम्हें सम्पूर्ण विधियोंका भलीभाँति पालन करता है, वह बारंबार नमस्कार है। मेरे सारे पाप हर लो। अन्तमे भगवान् नारायणके परमधाममें जाता है। कार्तिक-व्रतके नियम और उद्यापनकी विधि नारदजी कहते हैं-राजन् ! कार्तिकका व्रत (बैगन), कोहड़ा, भतुआ, लसोड़ा और कैथ भी त्याग करनेवाले पुरुषोंके लिये जो नियम बताये गये हैं, उनका दें। व्रती पुरुष रजस्वलाका स्पर्श न करे; म्लेच्छ, पतित, मैं संक्षेपसे वर्णन करता हूँ। ध्यान देकर सुनो । अन्नदान व्रतहीन, ब्राह्मणद्रोही तथा वेदके अनधिकारी पुरुषोंसे देना, गौओंको ग्रास अर्पण करना, वैष्णव पुरुषोंके साथ कभी वार्तालाप न करे। इन लोगोंने जिस अत्रको देख वार्तालाप करना तथा दूसरेके दीपकको जलाना या लिया हो, उस अत्रको भी न खाय; कौओंका जूठा किया उकसाना-इन सब कार्योंसे मनीषी पुरुष धर्मकी प्राप्ति हुआ, सूतकयुक्त घरका बना हुआ, दो बार पकाया तथा बतलाते हैं। बुद्धिमान् पुरुष दूसरेके अन्न, दूसरेकी जला हुआ अन्न भी वैष्णवव्रतका पालन करनेवाले शय्या, दूसरेको निन्दा और दूसरेको स्वीका सदा ही पुरुषोंके लिये अखाद्य है। जो कार्तिकमें तेल लगाना, परित्याग करे तथा कार्तिकमे तो इन्हें त्यागनेकी खाटपर सोना, दूसरेका अन्न लेना और काँसके बर्तन में विशेषरूपसे चेष्टा करे। उड़द, मधु, सौवीरक तथा भोजन करना छोड़ देता है, उसीका व्रत परिपूर्ण होता है। राजमाष (किराव) आदि अत्र कार्तिकका व्रत करनेवाले व्रती पुरुष प्रत्येक व्रतमें सदा ही पूर्वोक्त निषिद्ध मनुष्यको नहीं खाने चाहिये। दाल, तिलका तेल, वस्तुओंका त्याग करे तथा अपनी शक्तिके अनुसार भाव-दूषित तथा शब्द-दूषित अन्नका भी व्रती मनुष्य भगवान् विष्णुको प्रसन्नताके लिये कृच्छ्र आदि व्रतोंका परित्याग करे । कार्तिकका व्रत करनेवाला पुरुष देवता, अनुष्ठान करता रहे । गृहस्थ पुरुष रविवारके दिन सदा हो वेद, द्विज, गुरु, गौ, व्रती, स्त्री, राजा तथा महापुरुषोंकी आँवलेके फलका त्याग करे। । निन्दा छोड़ दे। बकरी, गाय और भैसके दूधको ोड़कर इसी प्रकार माघमें भी व्रती पुरुष उक्त नियमोंका अन्य सभी पशुओका दूध मांसके समान वर्जित है। पालन करे और श्रीहरिके समीप शास्त्रविहित जागरण भी ब्राह्मणोंके खरीदे हुए सभी प्रकारके रस, ताँबेके पात्रमें करे। यथोक्त नियमोंके पालनमें लगे हुए कार्तिकवत रखा हुआ गायका दूध, दही और घी, गढेका पानी और करनेवाले मनुष्यको देखकर यमदूत उसी प्रकार भागते केवल अपने लिये बनाया हुआ भोजन-इन सबको हैं, जैसे सिंहसे पीड़ित हाथी। भगवान् विष्णुके इस विद्वान् पुरुषोंने आमिषके तुल्य माना है। व्रती मनुष्योंको व्रतको सौ यज्ञोंकी अपेक्षा भी श्रेष्ठ जानना चाहिये। सदा ही ब्रह्मचर्यका पालन, भूमिपर शयन, पत्तलमें क्योंकि यज्ञ करनेवाला पुरुष स्वर्गलोकको पाता है और भोजन और दिनके चौथे पहरमें एक बार अन्न ग्रहण कार्तिकका व्रत करनेवाला मनुष्य वैकुण्ठधामको। इस करना चाहिये । कार्तिकका व्रत करनेवाला मानव प्याज, पृथ्वीपर भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले जितने भी क्षेत्र लहसुन, हींग, छत्राक (गोवर-छत्ता) गाजर, नालिक हैं, वे सभी कार्तिकका व्रत करनेवाले पुरुषके शरीरमें (भसीड), मूली और साग खाना छोड़ दे। लौकी, भाँटा निवास करते हैं। मन, वाणी, शरीर और क्रियाद्वारा
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy