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________________ उत्तरखण्ड ] --------------- • पवित्रारोपणकी विधि तथा श्रीहरिकी पूजामें आनेवाले पुष्पोंका वर्णनं • -------------------------------------------- समय जिसने भक्तिपूर्वक जलमें श्रीहरिकी पूजा की है, विशेषतः द्वादशी तिथिको जिसने जलशायी विष्णुका अर्चन किया है, उसने मानो कोटिशत यज्ञोंका अनुष्ठान कर लिया। जो वैशाख मासमें भगवान् माधवको जलपात्रमें स्थापित करके उनका पूजन करते हैं, वे इस पृथ्वीपर मनुष्य नहीं, देवता हैं। जो द्वादशीकी रातको जलपात्रमें गन्ध आदि डालकर उसमें भगवान् गरुडध्वजकी स्थापना और पूजा करता है, वह मोक्षका भागी होता है। जो श्रद्धारहित, पापात्मा, नास्तिक, संशयात्मा और तर्कमें ही स्थित रहनेवाले हैं, ये पाँच व्यक्ति पूजाके फलके भागी नहीं होते। * इसी प्रकार जो जगत्के स्वामी महेश्वर श्रीविष्णुको सदा जलमें रखकर उनकी पूजा करता है, वह मनुष्य सदाके लिये महापापोंसे मुक्त हो जाता है। देवेश्वरि ! 'ॐ ह्रां ह्रीं रामाय नमः' इस मन्त्रसे वहाँ पूजन बताया गया है। ॐ क्रीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपीजनवल्लभाय नमः इस मन्त्रसे जलको अभिमन्त्रित करना चाहिये। तत्पश्चात् निम्नाङ्कित मन्त्रसे अर्ध्य निवेदन करे (८७ । २३-२४) 'देवदेव । महाभाग ! श्रीवत्सके चिह्नोंसे युक्त महान् देवता! विश्वको उत्पन्न करनेवाले भगवान् नारायण ! मेरा अर्घ्य ग्रहण करें और मुझे सदाके लिये मोक्ष प्रदान करें।' Off. BATT जो नाना प्रकारके पुष्पोंसे गरुडासन श्रीविष्णुकी पूजा करता है, वह सब बाधाओंसे मुक्त हो श्रीविष्णुके सायुज्यको प्राप्त होता है। द्वादशीको एकाग्रचित्त हो रातमें जागरण करके अविकारी एवं अविनाशी भगवान् विष्णुका भक्तिपूर्वक भजन करे। इस तरह भक्तिकी इच्छा रखनेवाले पुरुषोंको भक्तिभावसे तत्पर हो भगवान् विष्णुका वैशाखसम्बन्धी उत्सव करना चाहिये, तथा उसमें आगमोक्त मन्त्रद्वारा समस्त विधिका पालन करना चाहिये। महादेवी! ऐसा करनेसे कोटि यज्ञोंके समान फल मिलता है। इस उत्सवको करनेवाला पुरुष रागद्वेषसे मुक्त हो महामोहकी निवृत्ति करके इस लोकमें सुख भोगता और अन्तमें श्रीविष्णुके सनातन धामको जाता है। वेदके अध्ययनसे रहित तथा शास्त्रके स्वाध्यायसे शून्य मनुष्य भी श्रीहरिकी भक्ति पाकर वैष्णवपदको प्राप्त होता है। ★ पवित्रारोपणकी विधि, महिमा तथा भिन्न-भिन्न मासमें श्रीहरिकी पूजामें काम आनेवाले विविध पुष्पोंका वर्णन देवदेव महाभाग श्रीवत्सकृतलाञ्छन । महादेव नमस्तेऽस्तु नमस्ते विश्वभावन ॥ Huy = श्रीमहादेवजी कहते हैं—देवेश्वरी! श्रावण मास आनेपर पवित्रारोपणका विधान है। इसका पालन करनेपर दिव्य भक्ति उत्पन्न होती है। विद्वान् पुरुषको भक्तिपूर्वक श्रीविष्णुका पवित्रारोपण करना चाहिये। पार्वती ! ऐसा करनेसे वर्षभरकी पूजा सम्पन्न हो जाती है। श्रीविष्णुके लिये पवित्रारोपण करनेपर अपनेको सुख होता है। कपड़ेका सूत, जो किसी ब्राह्मणीका काता हुआ हो अथवा अपने हाथसे तैयार किया हुआ हो, ले आये अर्घ्यं गृहाण भो देव मुक्तिं मे देहि सर्वदा । = ७४७ और उसीसे पवित्रक बनाये। उपर्युक्त सूतके अभावमें किसी उत्तम शूद्र जातिकी स्त्रीके हाथका काता हुआ सूत भी लिया जा सकता है। यदि ऐसा भी न मिले तो जैसातैसा खरीदकर भी ले आना चाहिये। पवित्रारोपणकी विधि रेशमके सूतसे ही करनी चाहिये अथवा चाँदी या सोनेसे श्रीविष्णु देवताके लिये विधिपूर्वक पवित्रक बनाना चाहिये सब धातुओंके अभावमें विद्वान् पुरुषोंको साधारण सूत ग्रहण करना चाहिये। सूतको * अश्रद्दधानः पापात्मा नास्तिकोऽच्छिन्नसंशयः । हेतुनिष्ठ पञ्चैते न पूजाफलभागिनः ॥ ८७ । १९)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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