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________________ उत्तरखण्ड ] . पुरुषोतम मासको 'कमला' और 'कामदा एकादशीका माहात्य . तत्पश्चात् व्रत करनेवाला मनुष्य मन और इन्द्रियोंको कलियुगमें तो एकादशी ही भव-बन्धनसे मुक्त वशमें करके गीत, वाद्य, नृत्य और पुराण-पाठ आदिके करनेवाली, सम्पूर्ण मनोवाञ्छित कामनाओंको देनेवाली द्वारा रात्रिमें भगवान्के समक्ष जागरण करे। फिर तथा पापोंका नाश करनेवाली है। एकादशी रविवारको, द्वादशीके दिन उठकर स्नानके पश्चात् जितेन्द्रियभावसे किसी मङ्गलमय पर्वके समय अथवा संक्रान्तिके ही दिन विधिपूर्वक श्रीविष्णुको पूजा करे । एकादशीको पशामृतसे क्यों न हो, सदा ही उसका व्रत करना चाहिये । भगवान् जनार्दनको नहलाकर द्वादशीको केवल दूधमें स्रान विष्णुके प्रिय भक्तोंको एकादशीका त्याग कभी नहीं करना करानेसे श्रीहरिका सायुज्य प्राप्त होता है। पूजा करके चाहिये। जो शास्त्रोक्त विधिसे इस लोकमें एकादशीका भगवानसे इस प्रकार प्रार्थना करे व्रत करते हैं, वे जीवन्मुक्त देखे जाते हैं, इसमें तनिक भी अज्ञानतिमिरान्धस्य व्रतेनानेन केशव। सन्देह नहीं है। प्रसीद सुमुखो भूत्वा ज्ञानदृष्टिप्रदो भव ॥ युधिष्ठिरने पूछा-श्रीकृष्ण ! वे जीवन्मुक्त कैसे (६४।३९) हैं? तथा विष्णुरूप कैसे होते हैं? मुझे इस विषयको 'केशव ! मैं अज्ञानरूपी रतौंधीसे अंधा हो गया जाननेके लिये बड़ी उत्सुकता हो रही है। हूँ। आप इस व्रतसे प्रसन्न हों और प्रसन्न होकर मुझे भगवान् श्रीकृष्ण बोले-राजन् ! जो ज्ञानदृष्टि प्रदान करें। कलियुगमे भक्तिपूर्वक शास्त्रीय विधिके अनुसार इस प्रकार देवताओंके स्वामी देवाधिदेव भगवान् निर्जल रहकर एकादशीका उत्तम व्रत करते हैं, वे गदाधरसे निवेदन करके भक्तिपूर्वक ब्राह्मणोंको भोजन विष्णुरूप तथा जीवन्मुक्त क्यों नहीं हो सकते हैं ? कराये तथा उन्हें दक्षिणा दे। उसके बाद भगवान् एकादशीव्रतके समान सब पापोंको हरनेवाला तथा नारायणके शरणागत होकर बलिवैश्वदेवकी विधिसे मनुष्योंकी समस्त कामनाओंको पूर्ण करनेवाला पवित्र पञ्चमहायज्ञोंका अनुष्ठान करके स्वयं मौन हो अपने बन्धु- व्रत दूसरा कोई नहीं है। दशमीको एक बार भोजन, बान्धवोंके साथ भोजन करे । इस प्रकार जो शुद्ध भावसे एकादशीको निर्जल व्रत तथा द्वादशीको पारण करके पुण्यमय एकादशीका व्रत करता है, वह पुनरावृत्तिसे रहित मनुष्य श्रीविष्णुके समान हो जाते हैं। पुरुषोत्तम मासके वैकुण्ठधामको प्राप्त होता है। द्वितीय पक्षकी एकादशीका नाम 'कामदा' है। जो भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं-राजन् ! ऐसा श्रद्धापूर्वक 'कामदा के शुभ व्रतका अनुष्ठान करता है, कहकर लक्ष्मीदेवी उस ब्राह्मणको वरदान दे अन्तर्धान हो वह इस लोक और परलोकमें भी मनोवाञ्छित वस्तुको गयीं। फिर वह ब्राह्मण भी धनी होकर पिताके घरपर आ पाता है। यह 'कामदा' पवित्र, पावन, महापातकनाशिनी गया। इस प्रकार जो 'कमला' का उत्तम व्रत करता है तथा व्रत करनेवालोंको भोग एवं मोक्ष प्रदान करनेवाली तथा एकादशीके दिन इसका माहात्म्य सुनता है, वह सब है। नृपश्रेष्ठ ! 'कामदा एकादशीको विधिपूर्वक पुष्प, पापोंसे मुक्त हो जाता है। धूप, नैवेद्य तथा फल आदिके द्वारा भगवान् युधिष्ठिर बोले-जनार्दन ! पापका नाश और पुरुषोत्तमकी पूजा करनी चाहिये । व्रत करनेवाला वैष्णव पुण्यका दान करनेवाली एकादशीके माहात्म्यका पुनः पुरुष दशमी तिथिको काँसके बर्तन, उड़द, मसूर, चना, वर्णन कीजिये, जिसे इस लोकमें करके मनुष्य परम कोदो, साग, मधु, पराया अत्र, दो बार भोजन तथा पदको प्राप्त होता है। मैथुन-इन दसोंका परित्याग करे। इसी प्रकार भगवान् श्रीकृष्णने कहा-राजन् ! शुक्ल या एकादशीको जूआ, निद्रा, पान, दाँतुन, परायी निन्दा, कृष्णपक्षमें जभी एकादशी प्राप्त हो, उसका परित्याग न चुगली, चोरी, हिंसा, मैथुन, क्रोध और असत्यकरे, क्योंकि वह मोक्षरूप सुखको बढ़ानेवाली है। भाषण-इन ग्यारह दोषोंको त्याग दे तथा द्वादशीके
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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