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________________ ६७६ • अर्चयस्व पीकेशं बदीच्छसि परं पदम् • [संक्षिप्त पापुराण आ जाती । 'प्रबोधिनी एकादशीको एक ही उपवास कर इस व्रतके द्वारा देवेश्वर ! जनार्दनको सन्तुष्ट करके मनुष्य लेनेसे मनुष्य हजार अश्वमेध तथा सौ राजसूय यज्ञका सम्पूर्ण दिशाओंको अपने तेजसे प्रकाशित करता हुआ फल पा लेता है। बेटा ! जो दुर्लभ है, जिसकी प्राप्ति श्रीहरिके वैकुण्ठ धामको जाता है। 'प्रबोधिनी' को. असम्भव है तथा जिसे त्रिलोकीमें किसीने भी नहीं देखा पूजित होनेपर भगवान् गोविन्द मनुष्योंके बचपन, जवानी है; ऐसी वस्तुके लिये भी याचना करनेपर 'प्रबोधिनी' और बुढ़ापेमें किये हुए सौ जन्मोंके पापोंको, चाहे वे एकादशी उसे देती है। भक्तिपूर्वक उपवास करनेपर अधिक हों या कम, धो डालते हैं। अतः सर्वथा प्रयत्न मनुष्योंको 'हरिबोधिनी' एकादशी ऐश्वर्य, सम्पत्ति, उत्तम करके सम्पूर्ण मनोवाञ्छित फलोंको देनेवाले देवाधिदेव बुद्धि, राज्य तथा सुख प्रदान करती है। मेरुपर्वतके जनार्दनको उपासना करनी चाहिये। बेटा नारद ! जो समान जो बड़े-बड़े पाप है, उन सबको यह पापनाशिनी भगवान् विष्णुके भजनमें तत्पर होकर कार्तिकमें पराये "प्रबोधिनी' एक ही उपवाससे भस्म कर देती है। पहलेके अन्नका त्याग करता है, वह चान्द्रायण व्रतका फल पाता हजारों जन्मों में जो पाप किये गये हैं, उन्हें 'प्रबोधिनी' की है। जो प्रतिदिन शास्त्रीय चर्चासे मनोरञ्जन करते हुए रात्रिका जागरण रूईकी ढेरीके समान भस्म कर डालता कार्तिक मास व्यतीत करता है, वह अपने सम्पूर्ण है। जो लोग 'प्रबोधिनी एकादशीका मनसे ध्यान करते पापोंको जला डालता और दस हजार यज्ञोंका फल प्राप्त तथा जो इसके व्रतका अनुष्ठान करते हैं, उनके पितर करता है। कार्तिक मासमें शास्त्रीय कथाके कहनेनरकके दुःखोंसे छुटकारा पाकर भगवान् विष्णुके सुननेसे भगवान् मधुसूदनको जैसा सन्तोष होता है, वैसा परमधामको चले जाते हैं। ब्रह्मन् ! अश्वमेध आदि उन्हें यज्ञ, दान अथवा जप आदिसे भी नहीं होता । जो यज्ञोंसे भी जिस फलकी प्राप्ति कठिन है, वह 'प्रबोधिनी' शुभकर्म-परायण पुरुष कार्तिक मासमें एक या आधा एकादशीको जागरण करनेसे अनायास ही मिल जाता श्लोक भी भगवान् विष्णुको कथा बाँचते हैं, उन्हें सौ है। सम्पूर्ण तीर्थोंमें नहाकर सुवर्ण और पृथ्वी दान गोदानका फल मिलता है। महामुने ! कार्तिकमें भगवान् करनेसे जो फल मिलता है, वह श्रीहरिके निमित्त जागरण केशवके सामने शास्त्रका स्वाध्याय तथा श्रवण करना करनेमात्रसे मनुष्य प्राप्त कर लेता है। जैसे मनुष्योंके चाहिये। मुनिश्रेष्ठ ! जो कार्तिकमें कल्याण-प्राप्तिके लिये मृत्यु अनिवार्य है, उसी प्रकार धन-सम्पत्तिमात्र भी लोभसे श्रीहरिकी कथाका प्रबन्ध करता है, वह अपनी क्षणभङ्गर है; ऐसा समझकर एकादशीका व्रत करना सौ पीढ़ियोंको तार देता है। जो मनुष्य सदा नियमपूर्वक चाहिये। तीनों लोकोंमें जो कोई भी तीर्थ सम्भव हैं, वे कार्तिक मासमें भगवान् विष्णुकी कथा सुनता है, उसे सब 'प्रबोधिनी एकादशीका व्रत करनेवाले मनुष्यके सहस्र गोदानका फल मिलता है। जो 'प्रबोधिनी' घरमें मौजूद रहते हैं। कार्तिककी 'हरिबोधिनी एकादशी एकादशीके दिन श्रीविष्णुकी कथा श्रवण करता है, उसे पुत्र तथा पौत्र प्रदान करनेवाली है। जो 'प्रबोधिनी'को सातों द्वीपोंसे युक्त पृथ्वी दान करनेका फल प्राप्त होता उपासना करता है, वही ज्ञानी है, वही योगी है, वही है। मुनिश्रेष्ठ ! जो भगवान् विष्णुकी कथा सुनकर अपनी तपस्वी और जितेन्द्रिय है तथा उसीको भोग और मोक्षकी शक्तिके अनुसार कथा-वाचककी पूजा करते हैं, उन्हें प्राप्ति होती है। अक्षय लोककी प्राप्ति होती है। नारद ! जो मनुष्य ____ बेटा ! 'प्रबोधिनी एकादशीको भगवान् विष्णुके कार्तिक मासमें भगवत्संबन्धी गीत और शास्त्रविनोदके उद्देश्यसे मानव जो स्नान, दान, जप और होम करता है, द्वारा समय बिताता है, उसकी पुनरावृत्ति मैंने नहीं देखी वह सब अक्षय होता है। जो मनुष्य उस तिथिको है। मुने! जो पुण्यात्मा पुरुष भगवान्के समक्ष गान, उपवास करके भगवान् माधवकी भक्तिपूर्वक पूजा करते नृत्य, वाद्य और श्रीविष्णुको कथा करता है, वह तीनों हैं, वे सौ जन्मोंके पापोंसे छुटकारा पा जाते हैं। लोकोंके ऊपर विराजमान होता है।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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