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• अर्चयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[ संक्षिप्त पद्मपुराण
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आया देख नृपश्रेष्ठने उनके चरणोंमें प्रणाम किया सूर्यवंशमें मान्धाता नामक एक चक्रवर्ती, सत्यऔर दोनों हाथ जोड़ गौतमके सामने खड़े होकर अपना प्रतिज्ञ और प्रतापी राजर्षि हो गये हैं। वे प्रजाका अपने सारा दुःखमय समाचार कह सुनाया। राजाकी बात औरस पुत्रोंकी भाँति धर्मपूर्वक पालन किया करते थे। सुनकर गौतमने कहा- 'राजन् ! भादोंके कृष्णपक्षमें उनके राज्यमें अकाल नहीं पड़ता था, मानसिक चिन्ताएँ अत्यन्त कल्याणमयी 'अजा' नामकी एकादशी आ रही नहीं सताती थीं और व्याधियोंका प्रकोप भी नहीं होता है, जो पुण्य प्रदान करनेवाली है। इसका व्रत करो। था। उनकी प्रजा निर्भय तथा धन-धान्यसे समृद्ध थी। इससे पापका अन्त होगा। तुम्हारे भाग्यसे आजके महाराजके कोषमे केवल न्यायोपार्जित धनका ही संग्रह सातवें दिन एकादशी है। उस दिन उपवास करके रातमें था। उनके राज्यमें समस्त वर्णों और आश्रमोंके लोग जागरण करना।'
___ अपने-अपने धर्ममें लगे रहते थे। मान्धाताके राज्यकी ऐसा कहकर महर्षि गौतम अन्तर्धान हो गये। भूमि कामधेनुके समान फल देनेवाली थी। उनके राज्य मुनिकी बात सुनकर राजा हरिश्चन्द्रने उस उत्तम व्रतका करते समय प्रजाको बहुत सुख प्राप्त होता था। एक अनुष्ठान किया। उस व्रतके प्रभावसे राजा सारे दुःखोंसे समय किसी कर्मका फलभोग प्राप्त होनेपर राजाके पार हो गये। उन्हें पत्नीका सन्निधान और पुत्रका जीवन राज्यमें तीन वर्षातक वर्षा नहीं हुई। इससे उनकी प्रजा मिल गया। आकाशमें दुन्दुभियाँ बज उठीं । देवलोकसे भूखसे पीड़ित हो नष्ट होने लगी; तब सम्पूर्ण प्रजाने फूलोंकी वर्षा होने लगी। एकादशीके प्रभावसे राजाने महाराजके पास आकर इस प्रकार कहाअकण्टक राज्य प्राप्त किया और अन्तमें वे पुरजन तथा प्रजा बोली-नृपश्रेष्ठ ! आपको प्रजाकी बात परिजनोंके साथ स्वर्गलोकको प्राप्त हो गये। राजा सुननी चाहिये। पुराणों में मनीषी पुरुषोंने जलको 'नारा' युधिष्ठिर ! जो मनुष्य ऐसा व्रत करते हैं, वे सब पापोंसे कहा है; वह नारा ही भगवान्का अयन-निवासस्थान मुक्त हो स्वर्गलोकमें जाते हैं। इसके पढ़ने और सुननेसे है; इसलिये वे नारायण कहलाते हैं। नारायणस्वरूप अश्वमेध यज्ञका फल मिलता है।
भगवान् विष्णु सर्वत्र व्यापकरूपमें विराजमान हैं। वे ही युधिष्ठिरने पूछा-केशव ! भाद्रपद मासके मेघस्वरूप होकर वर्षा करते हैं, वर्षासे अन्न पैदा होता है शुक्लपक्षमें जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम, कौन और अन्नसे प्रजा जीवन धारण करती है। नृपश्रेष्ठ ! इस देवता और कैसी विधि है? यह बताइये। समय अनके बिना प्रजाका नाश हो रहा है; अतः ऐसा
भगवान् श्रीकृष्ण बोले-राजन् ! इस विषयमें कोई उपाय कीजिये, जिससे हमारे योगक्षेमका निर्वाह हो । मैं तुम्हें आश्चर्यजनक कथा सुनाता हूँ; जिसे ब्रह्माजीने राजाने कहा-आपलोगोंका कथन सत्य है, महात्मा नारदसे कहा था।
क्योंकि अत्रको ब्रह्म कहा गया है। अन्नसे प्राणी उत्पन्न नारदजीने पूछा-चतुर्मुख ! आपको नमस्कार होते हैं और अनसे ही जगत् जीवन धारण करता है। है। मैं भगवान् विष्णुको आराधनाके लिये आपके लोकमें बहुधा ऐसा सुना जाता है तथा पुराणमें भी बहुत मुखसे यह सुनना चाहता हूँ कि भाद्रपद मासके विस्तारके साथ ऐसा वर्णन है कि राजाओंके अत्याचारसे शुक्लपक्षमें कौन-सी एकादशी होती है?
प्रजाको पीड़ा होती है, किन्तु जब मैं बुद्धिसे विचार ब्रह्माजीने कहा-मुनिश्रेष्ठ ! तुमने बहुत उत्तम करता हूँ तो मुझे अपना किया हुआ कोई अपराध नहीं बात पूछी है। क्यों न हो, वैष्णव जो ठहरे। भादोंके दिखायी देता। फिर भी मैं प्रजाका हित करनेके लिये पूर्ण शुक्लपक्षकी एकादशी 'पद्या' के नामसे विख्यात है। उस प्रयत्न करूंगा। दिन भगवान् हषीकेशकी पूजा होती है। यह उत्तम व्रत ऐसा निश्चय करके राजा मान्धाता इने-गिर्ने अवश्य करने योग्य है।
व्यक्तियोंको साथ ले विधाताको प्रणाम करके सघन